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अफगानिस्तान में हिन्दुओं की दशा पर बुद्धिजीवी मौन क्यों?

19 aug 2021

हाल ही में अफग़़ानिस्तान पर तालिबान ने दो दशक बाद अपना आधिपत्य पुन: जमा लिया है। मुल्ला बरादर के नेतृत्व में तालिबान ने अफग़़ानिस्तान के शासन पर फिलहाल के लिए कब्जा जमा लिया है। जहां एक ओर अफग़ान नागरिक तालिबान के बर्बर शासन के बारे में सोचकर ही भयभीत हो रहे हैं और किसी भी तरह बस निकलना चाहते हैं, तो वहीं कुछ राजेश कुमार जैसे वीर हिन्दू पुजारी भी हैं, जो अपनी संस्कृति को त्याग कर कहीं नहीं जाएंगे, चाहे जान पर ही क्यों न बन आए। लेकिन, कभी जिस अफग़़ानिस्तान के चर्चे हमारे वेद पुराणों में गांधार राज्य के नाम से होते थे, जिस अफग़़ानिस्तान में कभी मंत्रोच्चार और बौद्ध धर्म के अलावा किसी धर्म के बारे में उल्लेख तक नहीं होता था, वहाँ पर इस्लाम का ऐसा क्या आधिपत्य हुआ, कि आज केवल मु_ी भर हिन्दू और सिख ही बच पाए हैं? आखिर दुनिया भर के बुद्धिजीवी, जो सीरिया जैसे देशों के हालात पर दहाड़ें मार-मार कर रोते हैं, अफग़़ानिस्तान के हिंदुओं का नरसंहार पर मौन व्रत क्यों धारण कर लेते हैं?
देश-विदेश में बैठे अफगानिस्तान में भारतीयों को जो अपने धर्म की आस्था और आजादी दोनों ही चाहिये परंतु तालीबान शासन आने से अब हिन्दू व सिख धर्मावलंबियों को डर और खौफ के माहौल में जीना पड़ा।
पिछले ही वर्ष अफग़़ानिस्तान की राजधानी काबुल में एक गुरुद्वारे पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 27 अल्पसंख्यक सिखों को निशाना बनाकर मार दिया गया। एक फिदायीन ने अपने को पहले बम से उड़ा दिया और बाकि आतंकियों ने गुरुद्वारे पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। असल में मुद्दा यह है कि अफग़़ानिस्तान के 27 अल्पसंख्यक सिखों का नरसंहार हुआ है। इससे पहले भी अफग़़ानिस्तान में हिन्दू और सिखों पर आतंकी हमले हो चुके हैं। लेकिन कभी किसी को आर्थिक सहायता तो दूर, कोई दिलासा और भरोसा तक नहीं दिया गया।
अफग़़ानिस्तान का कोई आधिकारिक जनगणना नहीं है। स्वयं अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट और मीडिया के अनुसार 1990 में वहाँ 1 लाख हिन्दू और सिख आबादी थी, जोकि अब 300 के करीब भी नहीं होगी। अब आप स्वयं अंदाजा लगाइए कि उन 97,000 हिन्दुओं और सिखों के साथ क्या हश्र हुआ होगा।
अब सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक तौर पर भारत उनके लिए एकमात्र उम्मीद की किरण है। भारत में भी पिछले कई दशकों से यह सवाल उठता रहा है कि अफग़़ानिस्तान के अल्पसंखक समुदाय के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक कदम उठाए जाने चाहिए। वर्षों तक अनदेखा किया जाने के बाद आखिरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केंद्र सरकार ने साल 2019 में भारतीय नागरिकता कानून में एक संशोधन संसद से पारित करवाया, जिसका एकमात्र ध्येय पाकिस्तान, अफग़़ानिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना था। लेकिन इसके पीछे देशभर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए, मानो हिंदुओं के हक में आवाज उठाना एक अक्षम्य अपराध है।
अब एक प्रश्न ये उठता है : आखिर अफग़़ानिस्तान के इन हिंदुओं को और कितने अत्याचार झेलने होंगे? न इनके अपने घर में इनकी सुनने को कोई तैयार है, और यदि ये भारत में शरण लेना चाहिए, तो अपनी निकृष्ट राजनीति के लिए कुछ नीच लोग इन्हे शरण ही नहीं लेने देंगे।