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रिक्शा चालक को तीन करोड़ का नोटिस: दिल्ली में जीएसटी रजिस्ट्रेशन की फर्म तलाशती रही मथुरा पुलिस, नहीं मिला कार्यालय

ई-रिक्शा चालक को 3.43 करोड़ रुपये का आयकर विभाग की ओर से नोटिस भेजा गया था। इस मामले में मंगलवार को हाईवे पुलिस दिल्ली पहुंची। यहां पर जीएसटी रजिस्ट्रेशन फर्म का कार्यालय ही नहीं मिला। पुलिस के अनुसार प्रथम दृष्टया फर्जी फर्म भी फर्जी तरीके से बनाई गई है। पूरे दिन खाक छानने के बाद भी दिल्ली में कुछ हाथ नहीं आया। आसपास के लोगों ने भी इस तरह की किसी भी फर्म के होने से इनकार कर दिया।

थाना हाईवे की अमर कॉलोनी निवासी ई-रिक्शा चालक प्रताप चंद्र को 3.43 करोड़ का नोटिस आयकर विभाग की तरफ से मिला था। हाईवे पुलिस ने इसकी जांच शुरू कर दी है। मंगलवार को पुलिस की एक टीम थाना हाईवे के एसएसआई सुरेंद्र सिंह भाटी के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची। जीएसटी रजिस्ट्रेशन में सत्यम मार्केट, शॉप नंबर-18 मदर डेयरी के सामने वेस्ट दिल्ली में फर्म का पता लिखा था। लेकिन वहां कोई कार्यालय नहीं मिला। इस संबंध में एसएसआई ने बताया कि प्रथम दृष्टया तो फर्म ही फर्जी प्रतीत हो रही है। बावजूद टीम पूरी तरह से कार्यालय को तलाशने के लिए जुटी हुई है।

साइबर कैफे से मिला था डुप्लीकेट पैन कार्ड
थाना हाईवे की अमर कॉलोनी निवासी ई-रिक्शा चालक प्रताप चंद्र को 3.43 करोड़ रुपये का आयकर विभाग ने नोटिस भेजा था। उसकी फर्म का साल 2018-19 का टर्नओवर 43 करोड़ रुपये से अधिक का दिखाया गया था। ई-रिक्शा चालक ने 15 मार्च साल 2018 में पैनकार्ड तेजप्रकाश उपाध्याय के जनसुविधा केंद्र बाकलपुर पर अप्लाई किया। दो माह बाद भी पैनकार्ड नहीं मिला। कई चक्कर लगाने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उसने गिर्राज महाराज साइबर कैफे से डुप्लीकेट पैनकार्ड निकलवाया।

प्रताप चंद ने बताया कि 19 अक्तूबर को उनके पास नोटिस आया तो वह दंग रह गया। नोटिस भेजने वाला आयकर विभाग भी ई-रिक्शा चालक की हालत देखकर भी इसे कारोबारी नहीं मान रहा था। बावजूद ई-रिक्शा चालक की फाइल में करोड़ों की खरीद-फरोख्त का उल्लेख है। चालक ने दो पेज की शिकायत एसएसपी के नाम थाना हाइवे पुलिस को दी। एसएसपी डॉ.गौरव ग्रोवर ने बताया कि पुलिस को जांच करने के आदेश दिए हैं और दिल्ली में जिस स्थान पर कंपनी रजिस्टर्ड है, वहां के बारे में जानकारी के लिए टीम गई है। फिलहाल जांच की जा रही है।

फर्जी बैंक एकाउंट भी खोले गए होंगे
टैक्स एडवोकेट अतुल्य शर्मा ने बताया कि अगर फर्जी कंपनी खोली गई है तो इसमें फर्जी तरीके से बैंक एकाउंट भी खोला गया है। क्योंकि इतना बड़ा कारोबार दिखाने के लिए बैंक एकाउंट की भी जरूरत होती है। एकाउंट की जांच की जाए तो पता चल सकता है कि किस-किस ने कंपनी के साथ कारोबार किया है। फर्जी कार्य करने वाले एक तरह से दलाल के रूप में भी काम करते हैं, जिनके साथ लिखित में कुछ नहीं होता है और किसी दूसरी कंपनी के मार्फत सामान को इधर-उधर भेजकर कमाई करते हैं और टैक्स चोरी के साथ ही मोटी दलाली भी खाते हैं। जो सही फर्में होती हैं, उन्हें  सिर्फ सस्ता सामान लेने से मतलब होता है, किसने भेजा , कहां से आया, इससे उनका संबंध नहीं होता है। फर्जी काम करने वाले कभी-कभी अपने नौकरों को भी कंपनी में डायरेक्टर बना लेते हैं और करोड़ों का कारोबार करते हैं। समय पर टैक्स जमा होता रहे और लेन देन में विवाद न हो तो ऐसे फर्जी काम को पकड़ना मुश्किल होता है। इस तरह से लोग कई फर्जी फर्में बना लेते हैं और करोड़ों का कारोबार करने के बाद फर्म को बंद भी कर देते हैं।