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Rahul Gandhi: कृषि कानूनों पर बैकफुट पर आई मोदी सरकार ने राहुल गांधी को दे दिया चुनाव का बूस्टर डोज? प्रियंका ने लिखी PM को चिट्ठी

हाइलाइट्सकृषि कानून वापसी के ऐलान से बैकफुट पर सरकार, राहुल-प्रियंका की राजनीति को बूस्टर डोजप्रियंका ने लखनऊ में प्रधानमंत्री के डीजीपी कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने से पहले निशाना साधा हैप्रियंका ने कहा कि अगर वाकई किसानों को लेकर नियत साफ है तो टेनी के साथ मंच साझा न करिएनई दिल्ली/लखनऊ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि कानून वापसी के ऐलान ने 2015 की याद ताजा कर दी जब किसानों के सामने सरकार बैकफुट पर आई थी। इसी के साथ पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी की राजनीति को पावर बूस्टर भी मिल गया है। मोदी सरकार के इस कदम से राहुल के उस तर्क को मजबूती मिली है कि विपक्ष को मुद्दे उठाकर सरकार को घेरने की जरूरत है। वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी किसान मुद्दे को लेकर एक बार फिर पीएम मोदी पर धावा बोला है।

प्रियंका ने लखनऊ में प्रधानमंत्री के डीजीपी कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने से पहले निशाना साधा है। प्रियंका ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज आप लखनऊ में होने वाली डीजीपी कॉन्फ्रेंस में कानून व्यवस्था को संभालने वाले उच्च अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी अभी भी आपके मंत्रीमंडल में अपने पद बर बने हुए हैं, उन्हें बर्खास्त करिए।’

‘अगर नियत साफ है तो टेनी के साथ मंच न शेयर करें’
प्रियंका ने आगे कहा, ‘पीएम मोदी को लखनऊ में डीजीपी और आईजी कॉन्फ्रेंस अटेंड नहीं करनी चाहिए। मैंने इस विषय में उन्हें पत्र भी लिखा है। अगर देश के किसानों के प्रति आपकी नियत साफ है तो आज आप अपने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के साथ मंच पर विराजमान मत होईए। देशभर में किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लिजिए और जिन किसानों की मृत्यु हुई हैं उनके परिवारजनों को आर्थिक अनुदान दीजिए।’

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शुरुआत से मोर्चा संभाले थे राहुल गांधी
2020 में कृषि कानूनों के संसद में पास होते ही राहुल गांधी ने विपक्ष के दूसरे दलों के एकमुश्त समर्थन के बिना ही विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व करना शुरू कर दिया था। राहुल गांधी ने तब भी मोदी सरकार के खिलाफ अकेले मोर्चा संभाला था जब 2015 में भूमि अधिग्रहण संसोधित कानून लाया गया था। जबकि अन्य समान विचारधारा वाले दल काफी विचार-विमर्श के बाद ही आंदोलन का समर्थन करने आगे आए थे। दोनों ही कानूनों ने बड़े विपक्षी आंदोलन के लिए प्रेरित किया और आखिर में सरकार को झुकना पड़ गया था।

क्या था भूमि अधिग्रहण कानून?
यह मोदी सरकार 1.0 की शपथ के कुछ समय बाद ही हुआ था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2013 बनाया था। लेकिन साल 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लेकर आई जिसका पूरे देश में जमकर विरोध हुआ।

क्यों हुआ था कानून का विरोध?
मोदी सरकार का कहना था कि इस संसोधन के जरिए लोगों को उचित मुआवजा मिलेगा और अधिग्रहण की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता आएगी। इसके जरिए भूमि अधिग्रहण को सरल बनाने के लिए किसानों की सहमति का प्रावधान खत्म कर दिया जबकि 2013 के कानून में प्रावधान था कि कोई भी जमीन तभी अधिग्रहीत की जा सकेगी जब कम से कम 70 फीसदी किसान मालिक इसकी अनुमति दें। नए कानून में किसानों की सहमति का प्रावधान खत्म कर दिया गया। इसको लेकर संसद में भारी विरोध हुआ और आखिर में केंद्र सरकार को अपना कदम वापस लेना पड़ा।

संसद सत्र में पता चलेगा गैर कांग्रेसी दलों का रुख
कृषि कानूनों की बात करें तो किसान यूनियनों ने इस आंदोलन का ताना-बाना बुना था जिसने राहुल और दूसरे विपक्षी नेताओं के प्रयास को गति दी। हाल ही में पिछले महीने की तरह, सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक में कानूनों के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की योजना- अमल में लाने में फेल रही। संसद में आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान ही कृषि कानूनों की वापसी पर गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी दलों का रुख स्पष्ट होगा।

प्रियंका और राहुल का मोदी पर निशाना