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मलिन बस्ती के बच्चों ने पेश की नजीर: कभी भीख के लिए दर-दर भटके, अब मंच पर जी रहे किरदार

आगरा में मार्गदर्शन की रोशनी ने कई बच्चों के जीवन को बदल दिया। भीख के लिए दर-दर भटकने वाले नौनिहाल अब मंच पर किरदार निभा रहे हैं। कोई डांस में तो कोई अभिनय में प्रतिभा का लोहा मनवा रहा है। मंच पर थिरक रहे हैं और अपने सपनों को हकीकत में तब्दील कर रहे हैं।

सभी बच्चे पंचकुइयां स्थित शिक्षा भवन के पास की मलिन बस्ती से हैं। यहां परिवारों के पास पेट पालने के लिए कोई निश्चित काम नहीं है। दुकान, घरों में अस्थायी काम और बाजारों में नींबू-मिर्ची लगाकर कुछ पैसे कमाते हैं। दो वक्त की रोटी का संकट है, ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजने की कौन बात करे। गरीबी की मार और गलत संगत से अधिकांश बच्चे भीख मांगने लग जाते हैं।

बाल अधिकार कार्यकर्ता व महफूज संस्था के समन्वयक नरेश पारस ने बताया कि पुलिस प्रशासन के साथ साझा अभियान में पिछले एक साल में ऐसे 69 बच्चों को रेस्क्यू किया गया। उनकी काउंसिलिंग की गई। मार्गदर्शन मिला तो बदलाव आया। अब यह बच्चे हिप-हॉप, सेमी क्लासिकल, बॉलीवुड स्टाइल सहित डांस की कई विधाओं में पारंगत हैं। मंच पर किरदार निभा रहे हैं। इन बच्चों का परिषदीय विद्यालय में दाखिला कराया गया है। शिक्षा की रोशनी में अब वह भविष्य को लेकर सपने देखने लगे हैं।

कामिनी ने बताया कि पहले जब हम शहर के किसी कार्यक्रम में जाते थे तो लोग भिखारी बोलकर भगा दिया करते थे। मंच को दूर से ही देखा करते थे। अब मंच पर प्रस्तुति देते हैं। बहुत अच्छा अहसास होता है। स्कूल जाना शुरू कर दिया है। लगता है कि हम भी अन्य बच्चों के समान सब कुछ कर सकते हैं। मैं डांस में ही अपना करियर बनाऊंगी।

साबिया ने कहा कि गंदगी और कूड़े में खेलते थे। कई दिनों तक नहाते नहीं थे। डांस ने मुझे बदल दिया। मंच पर प्रस्तुति से आत्मविश्वास बढ़ा। अच्छे-बुरे की समझ और अच्छी हुई। स्कूल जाना शुरू किया। लोगों का व्यवहार बदल गया है। पहले कोई बात नहीं करता था, अब दोस्त बन गए हैं। स्कू ल में पता चला कि मैं भी पुलिस में भर्ती हो सकती हूं। मैं सिपाही बनूंगी।

नूर आलम ने कहा कि भीख मांगते समय मैं सड़क पर अपनी परछाईं देखकर डांस किया करता था। डांस करने से लोगों में इतना प्यार और सम्मान मिल सकता है, मुझे पता ही नहीं था। मुझे गणेश वंदना पर डांस करना बहुत अच्छा लगता है। अब मंच पर डांस करते हैं तो लोग पास आकर नाम पूछते हैं। पहले गंदे कपडे़ देखकर दूर हट जाते थे। मैं शिक्षक बनना चाहता हूं।

पृथ्वीराज ने कहा कि हमारे माता-पिता को लगता था कि पढ़-लिख कर कुछ हासिल नहीं होगा। हम डांस और खेलकूद में मेडल जीत कर लाए तो स्थिति बदली। उन्हें भी विश्वास हुआ कि हालात सुधर सकते हैं। अब मां कहती हैं कि पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करना ताकि सब इज्जत दें। लोग सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे अच्छा करने की हिम्मत मिलती है।