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आगरा का चुनावी इतिहास: अब तक कांग्रेस के 47, भाजपा के 37 विधायक बने, सपा सिर्फ दो बार जीती

सार
आजादी के बाद से जब भी प्रदेश के चुनाव में कोई लहर आई, तब आगरा के मतदाता उसके साथ रहे। अब तक के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा कांग्रेस के विधायक बने हैं। भाजपा दूसरे नंबर पर है।  

भाजपा, कांग्रेस और सपा के चुनाव चिन्ह

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अब तक के चुनावी इतिहास में ताजनगरी के मतदाताओं ने सबसे ज्यादा कांग्रेस के 47 नेताओं को विधानसभा पहुंचाया है। वर्ष 1952 से 2017 तक 17 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सर्वाधिक 47 विधायक चुने गए, जबकि 1985 में पहला चुनाव लड़ी भाजपा के अब तक 37 विधायकों ने मैदान फतह किया है। 1996 से बसपा ने जगह बनाई और 16 विधायकों को जिताकर वह तीसरे स्थान पर है। समाजवादी पार्टी केवल दो विधायक ही जिता सकी है।
आजादी के बाद 1952 में पहले विधानसभा चुनाव में जिले की सभी सीटों पर 10 विधायक कांग्रेस के जीते। अगले चुनाव में 1957 में कांग्रेस के पांच विधायक जीत सके। 1967 से आरपीआई, सोशलिस्ट और निर्दलियों से कांग्रेस को टक्कर मिलने लगी। 1985 में भाजपा ने आगरा पूर्वी सीट पर पहली बार में जीत दर्ज की। 1989 में भाजपा ने तीन, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल पाई। 
1991 में भाजपा ने पांच सीटें जीतीं 
इसी तरह 1991 में भाजपा पांच सीटों पर विजय पताका फहराई तो कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। 1993 में कांग्रेस एक सीट तो भाजपा छह सीटों पर विजयी रही। 1996 में बसपा ने पहली बार आगरा में दो सीटें जीतीं। इसके बाद बसपा 2007 और 2012 में छह-छह सीटें जीतकर प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई। इस दरम्यान सपा को आगरा में अब तक केवल एत्मादपुर और बाह में ही जीत मिल सकी है।

छह चुनाव में कांग्रेस का न खुला खाता
1952 से 1985 तक आगरा में कांग्रेस के विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे। 1985 में कांग्रेस के पांच विधायक थे, लेकिन उसके बाद 1989 के विधानसभा चुनाव से कांग्रेस का जिले से सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस को इस चुनाव में एक सीट भी नहीं मिली, जबकि इसके दो साल बाद हुए 1991 के चुनाव में भी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया। 

कांग्रेस के लिए आगरा में 1989 का चुनाव टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ, जिसके बाद कांग्रेस प्रत्याशियों को मिलने वाले मतों में लगातार कमी आती चली गई। साल 1993 और 1996 में एक-एक सीट जीती, पर साल 2002, 2007, 2012, 2017 के चुनाव में खाता नहीं खुल पाया। अधिकांश सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। 

लहर के साथ बहा आगरा
आजादी के बाद से जब भी प्रदेश के चुनाव में कोई लहर आई, तब आगरा के मतदाता उसके साथ रहे। जनता लहर में छह विधायक जनता पार्टी के चुने गए तो उसके बाद रामलहर में 1991 में पांच और 1993 में भाजपा को 6 सीटें जिताईं। इसके बाद साल 2007 में बसपा की बहुमत की सरकार में 6 सीटें बसपा को दीं तो 2017 के चुनाव में सभी 9 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी जीतकर विधायक बने। आजादी के बाद दूसरे विधानसभा चुनाव से कुछ सीटों पर जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, प्रजातांत्रिक समाज पार्टी, बीकेडी, रालोद, लोकदल जैसी पार्टियों के उम्मीदवार भी जीतते रहे। 

1952 से 2017 तक के चुनाव में जीते विधायक
कांग्रेस- 47
भाजपा-37
बसपा -16
जनता दल-12
जनता पार्टी- 9
निर्दलीय-8
बीकेडी-6
लोकदल-3
जनसंघ-3
आरपीआई-3
रालोद-2
सपा- 2

विस्तार

अब तक के चुनावी इतिहास में ताजनगरी के मतदाताओं ने सबसे ज्यादा कांग्रेस के 47 नेताओं को विधानसभा पहुंचाया है। वर्ष 1952 से 2017 तक 17 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सर्वाधिक 47 विधायक चुने गए, जबकि 1985 में पहला चुनाव लड़ी भाजपा के अब तक 37 विधायकों ने मैदान फतह किया है। 1996 से बसपा ने जगह बनाई और 16 विधायकों को जिताकर वह तीसरे स्थान पर है। समाजवादी पार्टी केवल दो विधायक ही जिता सकी है।

आजादी के बाद 1952 में पहले विधानसभा चुनाव में जिले की सभी सीटों पर 10 विधायक कांग्रेस के जीते। अगले चुनाव में 1957 में कांग्रेस के पांच विधायक जीत सके। 1967 से आरपीआई, सोशलिस्ट और निर्दलियों से कांग्रेस को टक्कर मिलने लगी। 1985 में भाजपा ने आगरा पूर्वी सीट पर पहली बार में जीत दर्ज की। 1989 में भाजपा ने तीन, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल पाई। 

1991 में भाजपा ने पांच सीटें जीतीं 

इसी तरह 1991 में भाजपा पांच सीटों पर विजय पताका फहराई तो कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। 1993 में कांग्रेस एक सीट तो भाजपा छह सीटों पर विजयी रही। 1996 में बसपा ने पहली बार आगरा में दो सीटें जीतीं। इसके बाद बसपा 2007 और 2012 में छह-छह सीटें जीतकर प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई। इस दरम्यान सपा को आगरा में अब तक केवल एत्मादपुर और बाह में ही जीत मिल सकी है।