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UP Election 2022: 16 लाल बत्तियों से नवाजा फिर भी 2017 में आगरा से लखनऊ नहीं पहुंची अखिलेश की ‘साइकिल’

नई हवा के साथ उतरी नई सपा (समाजवादी पार्टी) चुनावी समर में क्या गुल खिलाएगी इसका फैसला 10 मार्च को सबके सामने आ ही जाएगा। लेकिन 30 साल से आगरा की सियासी जमीन समाजवादी पार्टी के लिए बंजर है। 2012 में बनी सपा सरकार के दौरान आगरा के 16 नेताओं को लाल बत्तियों से नवाजे जाने के बाद भी 2017 में एक भी साइकिल सवार लखनऊ नहीं पहुंचा। लखनऊ की दौड़ में साइकिल की हवा रास्ते में ही निकल गई।

30 साल पहले 1992 में समाजवादी पार्टी बनी। 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम ने गठबंधन किया। तब आगरा की एत्मादपुर विधानसभा सीट पर चंद्रभान मौर्य के रूप में पहली बार सपा-बसपा गठबंधन को सफलता मिली। इसके बाद 2012 में बाह सीट से अरिदमन सिंह साइकिल से लखनऊ पहुंचे। परिवहन मंत्री बने। बाह सीट पर 50 साल से राजघराने का अपना वर्चस्व है। इन दो अपवादों को छोड़ दें, तो सपा को आगरा में कभी अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

2000 के दशक में मुलायम सिंह ने आगरा, फिरोजाबाद में समाजवादी नेताओं की पौध लगाई। जो दलित, पिछड़ों और मुस्लिमों की राजनीति के इर्दगिर्द घूमती रही। कुछ ऐसे भी नेता तैयार हुए जिनकी आस्था सत्ता बदलने के साथ ही बदल गई। 2012 में अरिदमन सिंह, शिव कुमार राठौर, रामसकल गुर्जर, आलोक पारीक सहित 16 लाल बत्तियां आगरा के खाते में आई थीं, जबकि आगरा में 9 में से महज एक सीट सपा को मिली थी।

सूबे की सत्ता में तीन बार मुलायम सिंह काबिज रहे। परंतु आगरा में कभी समाजवाद का लाल रंग सुर्ख नहीं हो सका। दलितों की राजधानी माने जाने वाले आगरा में नीले खेमे की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब रही। 2007 में बसपा को जिले की नौ में से सात सीटें मिली, जबकि 2012 में नौ में छह सीटों पर हाथी चिंघाड़ा। फिर 2017 में केसरिया परचम ने एतिहासिक सफलता प्राप्त करते हुए नौ में से नौ सीटें जीत लीं। परंतु नीले और केसरिया रंग पर आगरा में कभी लाल रंग नहीं चढ़ा।

सपा ने इस बार रालोद से गठबंधन किया है। इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा और 2017 में कांग्रेस से गठबंधन किया। बसपा और कांग्रेस गठबंधन कोई कमाल नहीं कर सका। दोनों चुनावों में सपा जिले में खाली हाथ रही। इस बार छोटे दलों से सपा ने हाथ मिलाया है। ये दोस्ती कितनी कामयाब होगी ये फैसला 10 मार्च को मतगणना के बाद होगा।

समाजवादी पार्टी ने 1997 में लोकसभा चुनाव में सिने अभिनेता राज बब्बर को आगरा सीट से प्रत्याशी बनाया। राजबब्बर की चमक से भगवान शंकर रावत का तिलस्म टूट गया। आगरा से राजबब्बर दो बार सांसद बने। ये आगरा में समाजवाद का स्वर्णिम युग था। परंतु पार्टी की अंदरूनी कलह के कारण राजबब्बर ने सपा को छोड़ दिया। जिसके बाद साइकिल दोबारा जिले में कभी रफ्तार नहीं पकड़ सकी। सियासी रूप से सपा के लिए बंजर जमीन फिर कभी उपजाऊ नहीं हो सकी।