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यूपी में अखिलेश राज में छात्राएं और महिलाएं थीं असुरक्षित, योगी सरकार में मिली बेहतर सुरक्षा,

उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने को लेकर सियासी संग्राम शुरू हो चुका है। सभी पार्टियां राज्य के विकास और महिला सुरक्षा को लेकर जहां बड़े-बड़े दावे कर रही हैं, वहीं ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारों के जरिए आधी आबादी को भविष्य के सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं। ऐसे में जनता के सामने अपने और उत्तर प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए फैसले लेने की चुनौती है। इस समय जनता का एक गलत फैसला उनके भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए महिलाओं को खासकर अतीत पर एक नजर डालने की जरूत है।

उत्तर प्रदेश में 2012 से 2017 तक समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की सरकार थी। इस दौरान यूपी में गुंडा राज था। सत्ता में गुंडों की हनक हुआ करती थी। इसकी सबसे बड़ी भुक्तभोगी छात्राएं और महिलाएं थीं। उनका सड़क पर और स्कूल-कॉलेज में जाना मुश्किल होता था। जब तक बेटियां घर वापस न आएं तब तक माता-पिता की सांसें अटकी रहती थीं। थाने जाने पर भी वहां अपराधी और बलात्कारी की सिफारिश में किसी का फोन आ जाता था।

समाजवादी पार्टी के तत्कालीन सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बलात्कार की घटनाओं पर दिये बयान ने आग में घी डालने का काम किया, जब उन्होंने कहा था कि लड़कों से गलती हो जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाए। इस बयान के बाद से तो लखनऊ ही नहीं, प्रदेश भर में मासूम बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार, अपहरण और हत्या के मामालों की बाढ़ आ गई थी। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक गैंगरेप की घटनाओं में उत्तर प्रदेश नंबर वन बन गया था।

2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री योगी ने सभी गुंडों को उनकी सही जगह पहुंचाया है। आज यूपी महिला सुरक्षा के मामले में अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण पेश कर रहा है। योगी सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों के साथ सख्ती से निपट रही है। सरकार ने पुलिस को कार्रवाई के लिए खुली छूट दी है। पुलिस-पब्लिक पार्टनरशिप के अलावा शोहदों पर नजर रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी तकनीक की मदद ली जा रही है।

2020 के एनसीआरबी के आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि 2019 के मुकाबले महिलाओं के खिलाफ अपराध में 9.7 प्रतिशत की कमी आई। वहीं 2013 के मुकाबले इसमें 9.2 प्रतिशत कमी आई थी। छेड़छाड़ की घटनाओं में भी राष्ट्रीय औसत से यहां काफी कम घटनाएं हुईं और 2020 में 2013 के मुकाबले 9.2 प्रतिशत कमी देखी गई। महिला प्रताड़ना के मामलों में तो 2013 के मुकाबले 64 प्रतिशत की भारी कमी आई। राष्ट्रीय औसत 2.2 के मुकाबले 2020 में उत्तर प्रदेश में अपराध 1.7 रहा था।