मनरेगा से तैयार कुआँ आजीविका का खुला नया रास्ता – Lok Shakti
November 1, 2024

Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

 मनरेगा से तैयार कुआँ आजीविका का खुला नया रास्ता

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के पेंड्रा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत सोनबचरवार निवासी 46 वर्षीया श्रीमती उमिन्द कुंवर की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से बना कुआं आजीविका के लिए सहारा बन गई है, इससे घर में सब्जी की खेती से आय का नया जरिया भी मिल गया है। वहीं निस्तारी की समस्या भी हल हो गई है।मनरेगा से ग्रामीण जन-जीवन को निरंतर मजबूती मिल रही है। इस योजना के तहत् कुआँ, डबरी, तालाब, पशु शेड, फलोद्यान सहित अन्य हितग्राही मूलक कार्यों से किसानों एवं पशुपालकों की आजीविका बेहतर हो रही है। योजना से ग्रामीणों, किसानों को उनके अपने निजी जमीन में स्वीकृत कार्यों में रोजगार भी मिल रहा है। मनरेगा से श्रीमती उमिन्द कुंवर घर की बाड़ी में कुआँ बनने के बाद अब उन्हें पहले की भाँति रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए पानी की व्यवस्था के लिए दूर तक भटकना नहीं पड़ता है। कुआँ बनने के बाद उनका जीवन सहज हो गया है। वे इस कुएँ से अपनी 50 डिसमिल की बाड़ी में विभिन्न तरह की साग-सब्जियों का उत्पादन भी ले रही हैं।
श्रीमती उमिन्द कुंवर ने बताया कि मनरेगा से खुद के नाम पर निर्मित परिसम्पत्ति से स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रही है। उनके परिवार में उनके पति श्री कलवन कुंवर के अलावा दो बच्चे हैं। परिवार के पास जीवन-यापन के लिए लगभग 2 एकड़ की खेती है। राज्य सरकार से वन अधिकार पट्टा के अंतर्गत एक एकड़ की जमीन भी मिली है, जिसमें वे धान का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी नरेगा में खुलने वाले कामों के अलावा पति के साथ मजदूरी करने भी जाती है।
श्रीमती कुंवर ने बताया कि कुआँ निर्माण की स्वीकृति से उन्हें लगा कि अब उनके पास भी अपनी संपत्ति है। इससे उनका सम्मान, बढ़ा है। उन्होंने बताया कि कुआँ बनने के बाद पहली बार वे अपनी बाड़ी में सब्जी-भाजी का उत्पादन ले रही हैं, जिसमें लगभग 2 डिसमिल में लहसुन, 6 डिसमिल में टमाटर और 5 डिसमिल में आलू लगाया है। इसके अलावा वे कुएँ के पानी से बाड़ी में लाल भाजी, भांटा (बैगन) एवं मिर्च का भी उत्पादन कर रही हैं। वे बताती हैं कि अभी शुरुआती उत्पादन का उपयोग वे घर के लिए उपयोग में कर रही हैं। इसके बाद जैसे-जैसे बाड़ी से पर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ निकलेंगी, वे उसे स्थानीय बाजार में बेचेगीं।