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UP Election Results 2022: नतीजे यूपी के, बताएंगे देश की सियासत का रुख…जानिए कैसे बदल सकता है समीकरण

लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के गुरुवार को आने वाले नतीजे प्रदेश नहीं देश की भी सियासत का रुख तय करेंगे। इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव (President Election) से लेकर राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) तक के समीकरण इन नतीजों पर निर्भर करेंगे। वहीं, राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने में लगे कुछ क्षेत्रीय दलों व दिग्गज चेहरों का भविष्य भी यूपी ही तय करेगा। देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य यूपी सबसे अधिक सांसद और विधायक चुनता है। राष्ट्रपति चुनाव में सबसे अधिक भागीदारी यूपी की है तो राज्यसभा में भी यूपी की सबसे अधिक सीटे हैं।

यूपी से तय होगी राष्ट्रपति की राह!
देश के मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है। इसके पहले नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। राष्ट्रपति के चुनाव में विधायक व सांसद मतदान करते हैं। सांसद के एक वोट का वेटेज 708 है। लेकिन विधायक के वोट का वेटेज राज्य की जनसंख्या व विधायकों की संख्या पर तय होता है। यूपी में एक विधायक के वोट का वेटेज 208 है, जो कि सर्वाधिक है। इस लिहाज से सांसद और विधायकों को लेकर यूपी के कुल वोटों का वेटेज 1.40 लाख से अधिक है।

यह संख्या राष्ट्रपति के लिए कुल वोटों का करीब 13% है। 2017 में यूपी में तीन चौथाई विधायक भाजपा के थे। वहीं, सहयोगी सहित 73 सांसद उनके पास थे। इसलिए, रामनाथ कोविंद की राह आसान हो गई थी। इस बार भी भाजपा के पास यहां 65 सांसद हैं, लेकिन विधानसभा का गणित बदल गया तो राष्ट्रपति पद पर मनचाहा चेहरा बैठाने की गणित मुश्किल में पड़ जाएगी। वहीं, नतीजे एग्जिट पोल के हिसाब से हुए तो राष्ट्रपति बनाने की राह आसान हो जाएगी।

जुलाई में राज्यसभा के 11 सीटों पर भी फैसला
यूपी से राज्यसभा की 11 सीटें 4 जुलाई को खाली हो जाएंगी। इनमें 5 सीटों पर भाजपा के जफर इस्लाम, सुरेंद्र नागर, जयप्रकाश निषाद, संजय सेठ व शिवप्रताप शुक्ला काबिज हैं। तीन सीटों पर सपा के विशंभर निषाद, रेवती रमण सिंह और सुखराम सिंह यादव सांसद हैं। एक सीट कांग्रेस के पास है, जिस पर कपिल सिब्बल उच्च सदन का हिस्सा हैं। वहीं, बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र और अशोक सिद्धार्थ का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। भाजपा के पास राज्यसभा में इस समय 97 सीटें हैं। यूपी के नतीजे तय करेंगे, कि यहां से उसकी संख्या बरकरार रहेगी या विपक्ष की संख्या बढ़ेगी।

सपा अगर बहुमत तक पहुंचती है या उसके विधायकों की संख्या दोगुनी-तिगुनी तक बढ़ती है तो राज्यसभा में वह इन सीटों को बरकरार रख पाएगी। बसपा के लिए भी संकट की स्थिति है। 2017 में पार्टी महज 19 सीटें ही जीत पाई थी। इसलिए राज्यसभा में संख्या नहीं बढ़ी। मौजूदा दोनों सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने के बाद बसपा का राज्यसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं रह जाएगी। ऐसे में विधानसभा में संख्या बढ़ने पर ही बसपा के लिए रास्ता खुल पाएगी। बसपा सुप्रीमो मायावती तक पिछले पौने पांच साल से किसी सदन की सदस्य नहीं हैं।

ऐंटी बीजेपी मोर्चे की अगुआई में ममता की राह भी तय होगी
पश्चिम बंगाल में भाजपा को करारी मात देने के बाद ऐंटी बीजेपी मोर्चे की अगुआई का ख्वाब देख रही ममता बनर्जी की राह तय करने में भी यूपी के नतीजों की अहम भूमिका होगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को समर्थन दिया था। इसके बाद ममता अखिलेश के लिए यूपी में प्रचार करने तक आई और उनको जिताने के लिए रैली भी की। यहां उन्होंने बंगाल का विकास मॉडल सामने रखते हुए यूपी वालों से अखिलेश को वोट देने की अपील की। अगर नतीजे अखिलेश यादव के पक्ष में जाते हैं तो ममता बनर्जी के भाजपा विरोधी गैर-कांग्रेसी धड़ा संभालने की ख्वाहिश को मजबूत मिलेगी। नतीजे अगर अखिलेश के खिलाफ गए तो सपा के साथ ही ममता की उम्मीदों को भी झटका लगेगा।

विधान परिषद का बहुमत भी नतीजों के भरोसे
15 मार्च से यूपी विधान परिषद की स्थानीय निकाय कोटे की 36 सीटों पर नामांकन होगा। अगले महीने चुनाव हैं। निचले सदन के नतीजे उच्च सदन की तस्वीर तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। परिषद में इस समय सपा की 48 और भाजपा की 36 सीटें हैं। हालांकि सपा के पांच एमएलसी भाजपा में जा चुके हैं। स्थानीय निकाय कोटे की सीटों पर ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, विधायक, सांसद वोटर होते हैं।

इसलिए, सत्ता का असर नतीजों पर साफ तौर पर पड़ता है। पिछले दो दशक के चुनाव के नतीजे देखें तो प्रदेश में जिसकी सरकार रहती है, स्थानीय निकाय कोटे की तीन चौथाई सीटें उसके ही खाते में जाती है। ऐसे में अगर नतीजे भाजपा के पक्ष में रहे तो दोनों सदनों में उसका बहुमत होगा। वहीं, नतीजे सपा के पक्ष में रहे तो वह भी दोनों सदनों में बहुमत में रहेगी।