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Editorial: समान नागरिक संहिता पर सकारात्मक कदम उठाना आवश्यक

26-3-2022

समान नागरिक संहिता की मांग देश में बीते काफी वर्षों से बढ़ती ही जा रही है। यह कोई सरल निर्णय नहीं है, क्योंकि यह अबतक विभिन्न धर्मों के प्रभाव से चलता आया है। समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी धर्मों के लिए एक ही कानून का दावा करता है। अभी तक हर धर्म का अपना अलग कानून या रीति-नीति है, जिसके हिसाब से व्यक्तिगत मामले जैसे शादी, तलाक आदि अन्य निर्णय होते हैं। हिंदू धर्म के लिए अलग, मुस्लिमों का अलग और ईसाई समुदाय का अलग कानून है। इसी क्रम को खत्म करने और भारत को एक करने की दृष्टि में समान नागरिक संहिता का नारा एक लंबे समय से बुलंद हुआ पड़ा है। उत्तराखंड जैसी देवभूमि में बढ़ते अतिक्रमण और इस्लामिक कट्टरता के फैलाव को रोकने के लिए उसे समान नागरिक संहिता की इस समय सर्वाधिक रूप से आवश्यकता है। यह एक धर्म विशेष नहीं अपितु क्षेत्रीय सौहार्द को कायम करने और देवभूमि की पवित्रता को धूमिल होने से बचाने के लिए किया जाने वाला प्रयास है, जिसकी नींव धामी सरकार ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक में रखने के साथ ही अपना एक चुनावी वादा पूर्ण करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।
आपको बता दें कि इससे पहले उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि “राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने से सभी के लिए समान अधिकार को बढ़ावा मिलेगा, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा और यह महिला सशक्तिकरण को मजबूत करेगा। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को जल्द से जल्द लागू करने से राज्य में सभी के लिए समान अधिकारों को बढ़ावा मिलेगा। यह सामाजिक सद्भाव को बढ़ाएगा, लैंगिक न्याय को बढ़ावा देगा, महिला सशक्तिकरण को मजबूत करेगा और राज्य की असाधारण सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पहचान और पर्यावरण की रक्षा करने में मदद करेगा।”
धामी ने आगे यह भी कहा कि “यह समान नागरिक संहिता उन लोगों के सपनों को साकार करने की दिशा में एक कदम होगा, जिन्होंने हमारे संविधान को बनाया और संविधान की भावना को मजबूत किया। यह अनुच्छेद 44 की दिशा में भी एक प्रभावशाली कदम होगा, जो सभी नागरिकों के लिए ष्टष्ट प्रदान करता है।” निश्चित रूप से समान नागरिक संहिता के आने से उत्तराखंड में और सकारात्मक परिवर्तन तो नजऱ आएंगे ही अपितु उसका उद्गम और भी बढिय़ा तरीके से सुनिश्चित हो पाएगा। अंतत: उत्तरखंड के बाद देश के हर राज्य में उसकी परिकल्पना अपने सिरे तक पहुंचने के साथ ही हर राज्य में समान नागरिक संहिता का अस्तित्व कायम हो सकता है!