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Azamgarh Lok Sabha Bypoll: आजम का ‘गढ़’ बचेगा या फिर लगेगी सेंध, रामपुर लोकसभा उप चुनाव को लेकर गहराई राजनीति

रामपुर: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के आजमगढ़ में लोकसभा उप चुनाव (Azamgarh Lok Sabha By Election) की सरगर्मी काफी बढ़ी हुई है। हालांकि, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) इस सीट पर उम्मीदवारी का पूरा दारोमदार आजम खान (Azam Khan) पर दे रखा है। सीतापुर जेल (Sitapur Jail) से रिहाई के बाद से आजम खान लगातार अपनी नाराजगी प्रदर्शित कर रहे थे। ऐसे में पिछले दिनों दिल्ली के अस्पताल में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से उनकी मुलाकात के बाद माहौल बदलता दिख रहा है। ऐसे में रामपुर का रण जोरदार होने की उम्मीद की जा रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से आजम खान ने बड़ी जीत दर्ज की थी। यूपी चुनाव 2022 के बाद जब उन्होंने इस सीट को खाली किया तो माना गया कि वे अपने परिवार के किसी सदस्य को इस सीट से उम्मीदवार बनाएंगे। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से घनश्याम लोधी को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। उनके सामने उम्मीदवार बनाए गए आसिम रजा किस प्रकार की उन्हें चुनौती पेश कर पाएंगे, यह देखना अब दिलचस्प होगा।

समाजवादी पार्टी की ओर से रामपुर लोकसभा सीट पर उम्मीदवार की घोषणा आखिरी दिन का आधा पहर बीतने के बाद भी नहीं हो पाने को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे। बाद में आजम खान ने स्वयं आसिम रजा को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया। भाजपा के घनश्याम लोधी को भी आजम खान का खासमखास माना जाता रहा है। ऐसे में आजम अपने गढ़ को बचाने के लिए किस प्रकार की चुनौती पेश करते हैं और वह उम्मीदवार आने वाले समय में किस प्रकार से मुकाबला करता है, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे, रामपुर का चुनावी समीकरण आजम खान के आसपास ही घूमता रहा है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव वे इस सीट पर खासा प्रभाव छोड़ते हैं।

हालांकि, इस सीट पर उम्मीदवारी को लेकर वे कई बार बगावती तेवर भी दिखा चुके हैं। ऐसे में यह सीट काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। रामपुर से वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी जीते थे। हालांकि, पिछले आठ सालों में भाजपा ने किसी भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार को प्रदेश में चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। इस बार भी नकवी के चुनावी मैदान में उतारे जान की चर्चा थी, लेकिन भाजपा ने जनवरी 2022 में सपा छोड़कर आए पूर्व विधान पार्षद को चुनावी मैदान में उतार कर माहौल को बदलने का प्रयास किया है।

50 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी डिसाइडर
रामपुर लोकसभा सीट पर 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी डिसाइडर की भूमिका में होती है। लोकसभा सीट के कुल वोटरों की संख्या करीब 16 लाख है। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इस लोकसभा सीट पर 50.57 फीसदी आबादी मुस्लिम मतदाताओं की है। वहीं, 45.97 फीसदी हिंदुओं की जनसंख्या है। मुस्लिम वोटर ही इस इलाके में जीत का समीकरण तय करते हैं। मुस्लिमों के बीच आजम खान का अलग रुतबा है। हालांकि, आजम खान से अधिक समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में प्रभावी रही है। इस लोकसभा सीट पर पिछले चुनावों की स्थिति देखें तो मुलायम सिंह यादव ने आजम खान का बर्चस्व तोड़ा था। वहीं, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने तीसरी बार जीत हासिल की थी। पहली बार इस सीट पर भाजपा वर्ष 1991 के चुनाव में जीत दर्ज करने में सफल रही थी। दूसरी बार 1998 और तीसरी बार 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां से सफलता मिली थी।

पिछले पांच चुनावों में तीन बार सपा को सफलता
रामपुर लोकसभा चुनाव के रिजल्ट को देखें तो तीन बार समाजवादी पार्टी को जीत दर्ज करने में सफलता मिली है। एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा यहां से जीती है। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बेगम नूर बानो उर्फ मेहताब जमानी बेगम ने यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा तक का सफर तय किया था। उन्होंने भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी को 1,15,471 वोटों के अंतर से मात दी थी। वर्ष 1999 के बाद से कांग्रेस तो चुनावी लड़ाई में दिखी, लेकिन उसके बाद पार्टी को यहां से जीत नहीं मिली है। रामपुर से पिछले दो दशक से पार्टी की झोली खाली है।

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा को चुनावी मैदान में उतारा। मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे अमर सिंह की सिफारिश पर जया प्रदा मैदान में उतरीं और उन्होंने कांग्रेस की बेगम नूर बानो को 85,474 वोटों के अंतर से मात दी। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खान के विरोध के बाद भी जया प्रदा को मुलायम सिंह यादव ने दूसरी बार चुनावी मैदान में उतारा। जया प्रदा ने इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की बेगम नूर बानो को 30,931 वोटों से मात दी। इस चुनाव में आजम खान ने पार्टी लाइन से अलग जाकर जया प्रदा के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया था। लेकिन, मुलायम की रणनीति के आगे उनकी एक नहीं चली। इसके बाद बाद आजम ने सपा से अपनी राह अलग कर ली थी। हालांकि, वर्ष 2010 में एक बार फिर वे अमर सिंह की सपा से विदाई के बार पार्टी से जुड़ गए।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मोदी लहर का फायदा उठाते हुए इस सीट पर अपना कब्जा जमाया। भाजपा के डॉ. नेपाल सिंह ने समाजवादी पार्टी के नसीर अहमद खान को 23,435 वोटों से हराया। नसीर अहमद खान को आजम खान का काफी करीबी माना जाता था, लेकिन भाजपा, सपा और बसपा की लड़ाई में बाजी भाजपा के पाले में गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से दो बार की सांसद जया प्रदा को चुनावी मैदान में उतारा। यहां से आजम स्वयं इस बार चुनावी मैदान में उतरे। उन्होंने जया प्रदा को 1,09,997 वोटों के भारी अंतर से हरा दिया।

बसपा-कांग्रेस नहीं उतार रही उम्मीदवार
लोकसभा उप चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने रामपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार नहीं उतारने की घोषणा की है। वहीं, आजम खान ने पत्नी तंजीन फात्मा के साथ सपा कार्यालय में पहुंचकर आसिम रजा के नाम का ऐलान किया। इसके साथ ही तय हो गया है कि आसिम रजा और घनश्याम लोधी के बीच रामपुर में सीधा मुकाबला होगा। कांग्रेस और बसपा का त्रिकोण नहीं बनने की स्थिति में आजम खान अपने गढ़ को बचा पाने में कामयाब भी हो सकते हैं। वहीं, भाजपा भी अपना पूरा जोर लगाती दिख रही है। सपा को अपनी सिटिंग सीट को बचाने की चुनौती है। इसके लिए आजम खान पूरा प्रयास करते दिख रहे हैं।