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रांची: साहिबगंज में अवैध खनन सिंडिकेट की भूमिका की ED जांच, IWAI ट्रांसपोर्टरों को रोकने का मामला

Ranchi: साहिबगंज में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) ट्रांसपोर्टरों को रोकने में अवैध खनन सिंडिकेट की भूमिका के की ईडी जांच कर रही है. ईडी इस आरोप की जांच कर रही है कि संगठित खनन सिंडिकेट ने गंगा नदी पर नवनिर्मित मल्टी-मोडल टर्मिनल (एमएमटी) की क्षमता का दोहन करने के लिए भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) को बाधित किया या नहीं. जांच अभी शुरुआती चरण में बताई जा रही है, इसलिए इस स्तर पर कुछ भी निर्णायक नहीं कहा जा सकता है. लेकिन यह कहा गया कि अदालत के आदेश के बावजूद IWAI परमिट वाले जलमार्ग ट्रांसपोर्टरों को अनुमति नहीं दी गई, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ.

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290 करोड़ रुपये की लागत से बना

बता दें कि मल्टी-मोडल टर्मिनल 290 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित है. इसकी 6 अप्रैल, 2017 को आधारशिला रखी गई थी, इसका उद्घाटन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 सितंबर, 2019 को किया था. यह जल मार्ग के तहत गंगा नदी पर बने तीन मल्टीमॉडल टर्मिनलों में से दूसरा था. संथाल परगना के तीन जिलों साहिबगंज, दुमका और पाकुड़ में अवैध खनन की जांच के दौरान यह पता चला कि पत्थर खनन में हिस्सेदारी रखने वाले कुछ अंतर्देशीय जलमार्ग ट्रांसपोर्टरों ने अन्य निजी ट्रांसपोर्टरों के लिए परेशानी पैदा की है.

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तीन कंपनियों को अनुमति मिली थी

साल 2020 में, IWAI ने तीन कंपनियों को गंगा नदी के साथ-साथ मनिहारी और बाघमारा (बिहार), मणिचक (बंगाल) और कई अन्य स्थानों पर रो-रो सुविधाओं के विकास और संचालन के लिए अस्थायी सुविधाएं स्थापित करने की अनुमति दी. इन कंपनियों में कैम्ब्रिज कंस्ट्रक्शन (दिल्ली) लिमिटेड, अडानी लॉजिस्टिक्स लिमिटेड और वर्सेल्स शिपिंग सर्विसेज शामिल हैं, लेकिन जून 2020 में के. रविकुमार की अध्यक्षता में परिवहन विभाग ने IWAI परमिट वाले ऐसे सभी जहाजों के संचालन को रोकने का आदेश जारी किया. राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि IWAI के इस तरह के काम से राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान होगा.

बंगाल फेरी अधिनियम 1895 का उल्लेख करते हुए सरकार ने कहा कि जलमार्ग पर नौका सेवा की अनुमति देने का अधिकार केवल राज्य सरकार के पास सुरक्षित है.  इसने आगे तर्क दिया कि उसने निविदा के माध्यम से एक स्थानीय परिवहन समिति को नौका सेवा का अधिकार आवंटित किए हैं. यह भी कहा गया था कि IWAI का नदी के किनारे की भूमि पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है इसलिए यह किसी भी जलमार्ग ट्रांसपोर्टर को अस्थायी या स्थायी सुविधाएं स्थापित करने की अनुमति नहीं दे सकता है.

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झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी थी

झारखंड सरकार की इस दलील को जय बजरंगवली ट्रांसपोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.  उक्त कंपनी ने IWAI से परमिट प्राप्त किया. लेकिन साहिबगंज और कटिहार के प्रशासन ने कंपनी को अपने जहाजों के चलने पर रोक लगा दी. झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलील को खारिज करते हुए इसे अधिकार क्षेत्र की त्रुटि का मामला बताया. 6 अक्टूबर, 2021 के आदेश में अदालत ने कहा कि जलमार्ग पर परिवहन विभाग का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. बंगाल फेरी अधिनियम कोई असाधारण शक्ति नहीं देता है,लेकिन कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद उक्त कंपनी संचालित नहीं हो पा रही है.

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