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क्या सच में झारखंड में बढ़ गया है अपराध?

Saurav Singh

Ranchi: पिछले कुछ दिनों से राज्य में अपराध के आंकड़ों को लेकर झारखंड पुलिस निशाने पर है. खासकर विपक्षी पार्टी ने इसे लेकर पुलिस व सरकार दोनों को घेरा है.  तो क्या सच में झारखंड में अपराध बढ़ गया है और क्या सच में झारखंड में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति  बीते सालों की तुलना में खराब हो गयी है! हमने इसे  आंकड़ों से ऐसे समझने की कोशिश की है.

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 अपराध की स्थिति

 

 हत्या

 

वर्ष            संख्या

 

2018              1157 (1 जनवरी -31 जुलाई)

 

2019               1126 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2020               1043 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2021        1121 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2022         1034  (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

 डकैती

 

वर्ष            संख्या

 

2018              90 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2019               71 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2020               65 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2021        76 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2022         71  (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

 दुष्कर्म

 

वर्ष            संख्या

 

2018              931 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2019              1043 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2020               1033 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2021        929 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2022         981 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

 फिरौती के लिए अपहरण

 

वर्ष            संख्या

 

2018              22 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2019               16 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2020               12 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2021        20 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2022         23 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 लूट की घटनाएं

 

वर्ष            संख्या

 

2018              315 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2019               372 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2020               354 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2021        423 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

2022         408 (1 जनवरी-31 जुलाई)

 

अपराध ना तो ज्यादा बढ़ा है और ना ही हुआ बहुत कम

ऊपर के आंकड़े बताते हैं कि अपराध और नक्सलवाद की स्थिति पहले के दो सालों की जैसी ही है. इसमें ना तो ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और ना ही बहुत ज्यादा कमी. यानी कि कम से कम आंकड़ों में स्थिति पहले की ही तरह है. हालांकि आंकड़ों का अपना खेल है. अपराध या नक्सलवाद की स्थिति को सिर्फ आंकड़ों से नहीं आंका जा सकता. घटना की तीव्रता, उसके स्थान और घटना होने के तरीके से भी हालात को अलग-अलग व्याख्या करते हैं. कुछ घटनाएं समाज और उसके लोगों को चौंकाते हैं. जिससे लोगों को लगता है कि अपराधियों में पुलिस का डर समाप्त हो गया है.

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