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Editorial:भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण

14-10-2022

सनातन धर्म और सनातन धर्म के चिह्नों को भारत भूमि सदियों से संजोते आ रही है लेकिन एक समय आया जब विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने इस भूमि को अपनी धूर्त सोच और रक्तपात से दूषित तो किया ही साथ ही साथ यहां के मंदिरों को बहुत हानि भी पहुंचायी। मुस्लिम आक्रांताओं ने जो किया सो किया लेकिन देश की स्वतंत्रता के पश्चात की सरकारों ने भी मंदिरों और सनातन धर्म के धरोहरों को अनदेखा किया और उन्हें बिन मां के बच्चे की तरह त्याग दिया। लेकिन 2014 में एक नयी सरकार का गठन हुआ और जनता के आशीर्वाद से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनाए गए और फिर यहीं से सनातनी धरोहरों और धार्मिक स्थलों के दिन फिरने लगे।

मोदी सरकार में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों के विकास और जिर्णोंद्धार के लिए अभूतपूर्व कार्य किए जा रहे हैं जिसके एक से बढ़कर एक उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। इस लेख में उन्हीं उदाहरणों के बारे में जानेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे नरेंद्र मोदी की सरकार अपने विकास कार्यों की सूची में देश के मंदिरों और धार्मिक स्थलों को भी एक महत्वपूर्ण स्थान दे रही है।नवीन उदाहरण की बात करें तो सनातन धर्म के 12 ज्योतिर्लिंग में से चार के लिए तो पहले से ही सरकार के द्वारा विकास कार्य किए जा रहे हैं लेकिन अब इस सूची में पांचवां ज्योतिर्लिंग भी सम्मलित हो चुका हैं। बुधवार, 12 अक्टूबर को महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विकास परियोजना के पहले चरण का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल कॉरिडोर ‘महाकाल लोक’ का पूरा परिसर निर्माण हो रहा है जो कि 20 हेक्टेयर में फैला है और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना अधिक है। लगभग 856 करोड़ रुपये की लागत के इस प्रोजेक्ट के पहले चरण को लगभग 350 करोड़ रुपये में संपन्न कर लिया गया। आपको बता दें कि पांच हेक्टेयर में उत्तर प्रदेश का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर फैला हुआ है।

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के दर्शन करने के साथ-साथ भक्त महाकाल लोक में कला और अध्यात्म के अद्भुत और अद्वितीय मिश्रण को भी देख पाएंगे। महाकाल लोक में शिव परिवार की प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं और भगवान शिव की लीलाओं को बताने के लिए छोटी-बड़ी लगभग 200 प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं।

अब आपको थोड़ी जानकारी महाकालेश्वर मंदिर के बारे में दे देते हैं, तो इस मंदिर को मुस्लिम शासकों ने बार बार तोड़ा लेकिन इसके अस्तित्व को कभी मिटा नहीं पाए और समय-समय पर हिंदू राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण भी करवाया। दिल्ली के शासक शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश ने वर्ष 1234 में मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर को तोड़ डाला। ज्योतर्लिंग को उसके आक्रमण से बचाने के लिए पुजारियों ने ज्योतर्लिंग को कुंए में छिपा दिया और 550 साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही।
काशी विश्वनाथ मंदिर का कायाकल्प देर सवेर ही सही पर करीब साढ़े तीन सौ सालों बाद इसी नरेंद्र मोदी सरकार में किया गया है। बीते दिसंबर 2021 में, काशी विश्वनाथ धाम का कायाकल्प 21 माह में पूर्ण हुआ था जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। लगभग 55 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले विश्वनाथ धाम के निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही जटिल थी। इसके लिए कुल 315 भवनों का अधिग्रहण किया गया और लगभग 700 परिवारों को विस्थापित और पुनर्वास किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर आने-वाले श्रद्धालुओं को गलियों और तंग संकरे रास्तों से नहीं गुजरना पड़ेगा इसलिए यहां काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाया गया। इसके बनने के बाद गंगा घाट से सीधे कॉ‍रिडोर के रास्‍ते बाबा विश्‍वनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोनों ही कार्यकाल को देखें तो इस सरकार ने देश के प्राचीन मंदिरों को केंद्र मान उनके कायाकल्प को लेकर दृढ़तापूर्वक काम किया और उन्हें ऐसा बनाया कि विश्वस्तर पर इनकी चर्चा हो। आज भारतीय संस्कृति और उसकी जीवटता को जीवंत रखने के लिए पीएम मोदी धड़ल्ले से काम करने में लगे हुए हैं। भारत की संस्कृति को और चमकाने के लिए संकल्पबद्ध सरकार के लिए अभी देश के और मंदिर, देवस्थानों, मठ प्रतीक्षा में हैं।