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पिताजी शहीद हुए थे 1962 के चीन युद्ध में, महीने बाद मिली थी खबर कि पापा अब नहीं रहे

लद्दाख की गलवान की घाटी में भारत चीन के बीच जारी तनाव खूनी हो गया। इस घटना में शहीद 20 जवानों की खबर सुनने के बाद शहर में रह रहे सेवानिवृत सेना के अधिकारी और ऐसी बेटी जिसने 1962 के भारत चीन युद्ध में अपने पिता को खोया है। उनके सामने एक बार फिर वहीं मंजर सामने आ गया। इनका कहना है कि चीन ने हमेशा भारत को झुकाने की कोशिश की है। वह तो सेना के हौसला है जिसने भारत का सिर झुकने नहीं दिया। जिन परिवार ने उस दुख को भोगा है उन्होंने अपने अनुभव साझा किए। 

पिता 1962 के भारत चीन युद्ध में शहीद हुए एक माह बाद खबर मिली

निहारिका अपने पति लेफ्टिनेंट जनरल मिलन नायडू के साथ।

मेरे पिता कर्नल ब्रह्मानंद अवस्थी हमेशा यादों में जिंदा है। जब वे शहीद हुए तब मैं साढ़े आठ साल की थी। हम लोग मऊ में रहते थे। मैं मेरी छोटी बहन और मां पिता के युद्ध में जाने के बाद ताऊजी के यहां शिफ्ट हो गए थे। जिस समय पिता युद्ध के लिए रवाना हुए थे तब भारत सरकार की स्थिति अच्छी नहीं थी। भारत के सैनिकों के पास युद्ध के लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। जिस स्थान पर ठंड थी वहां भारतीय सैनिक सूती कपड़े और टारपोलिन के बने जूते पहनकर युद्ध लड़ने गए थे। उस समय किसी भी तरह का कम्यूनिकेशन  का संसाधन नहीं था। पिता जब युद्ध पर जा रहे थे उसके पहले उन्होंने परिवार की एक फोटो खिंचवाई थी। इसके बाद पिता युद्ध में चले गए। उसके बाद रेडियो पर युद्ध के समाचार सुनते थे। मेरी मां ठीक वैसी ही थी जैसी एक सेना के अधिकारी की पत्नी होना चाहिए। शांत गंभीर और मजबूत इरादों वाली। मेरे पिता के शहीद होने की खबर एक माह बाद मिली। पिता के अंतिम दर्शन नहीं मिले इसकी वजह सैनिकों के शव वहीं दफना दिए गए थे। चीनी सेना ने कमांडिग अधिकारी को एक डंडा लगाकर एक कंबल में लपेटकर दफना दिया था। उस समय भारत सरकार ने न तो सैनिको के परिवारों की सुध ली थी और न ही किसी तरह मदद की थी। उस वक्त पिता के मऊ के बैंक खाते में 275 रूपए जमा थे, लेकिन वह बैंक भी युद्ध के दौरान दिवालिया हो गया था जिससे उस समय परिवार को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। मेरी मां बहुत जुझारू थी जिनकी वजह से दोनों बहनें पढ़ पाई। बाद में मेरी शादी एक सोलजर से हुई यह मेरे लिए गर्व की बात है। मेरे पति लेफ्टीनेंट जनरल मिलन नायडू ने भी उस स्थान पर कोर कमांडिग की जहां वर्तमान में यह हालत बने हैं। – जैसा कि कर्नल स्व. ब्रह्मानंद अवस्थी की बेटी नीहारिका नायडू ने बताया।

मेजर आर एस अय्यर

जब पिता युद्ध में थे तब चीनी के खिलाफ आक्रोश था

सेवानिवृत्त बिग्रेडियर आर विनायक

मेरे पिता मेजर आर एस अय्यर ने चीन- भारत युद्ध में भाग लिया था। तेजपुर के आगे उनका कैंप लगा हुआ था। वे मिलिट्री पुलिस में थे। उनका काम सेना की गाड़ियों पर नजर रखना थी। 1962 के चीनी भारत युद्ध में पिता जब युद्ध स्थल पर थे तो उस समय मेरी उम्र आठ साल की थी। मेरे एक भाई और बहन बाेर्डिग स्कूल में थे। मां के पास केवल मैं था। युद्ध के समाचार केवल रेडियो से सुनने मिलते थे। युद्ध की खबरों पर मेरी मां अनुसुईया अय्यर ध्यान तो देती थी, लेकिन अपनी चिंता कभी मुझ तक नहीं पहुंचने दी। मुझे एक ओर युद्ध करने गए पिता पर गर्व होता था, वहीं चीनी के प्रति आक्रोश भी था गुस्सा आता था कि उन्हें जाकर लड़ाई के मैदान पर मांरू। जब लड़ाई खत्म हुई तो पिता ने वीर सैनिकों के बारे में बताते थे। उनके साथियों ने डट कर मुकाबला किया। बिना कोई संसाधन के चीनी सेना से युद्ध लड़ा। सब बातों को सुनकर मैंने भी सेना में जाने का निर्णय लिया थी। गलवान की घटना ने 1962 के युद्ध की याद दिला थी। चीन हमेशा से धोखे से वार करता रहा है। गलवान में अभी भी वही हरकत की जो उस समय की थी। जब सैनिक पेट्रोलिंग पर गए थे तब चीनी सैनिको ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। आज तो सरकार भी सुदृढ़ है और स्थिर है इसलिए सेना को निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना चाहिए। सेना में हर एक जगह पर कमांडिंग अधिकारी अपने जवानों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ते है। वे किस परिस्थिति में लड़ रहे है उनका लाइन ऑफ एक्शन क्या होना चाहिए यह जानकारी एक सेना के अधिकारी को होती है।  बार्डर पर सेना जिन परिस्थियों में जूझ रही है वहां की रिपोर्टिंग बंद होना चाहिए। इसका फायदा चीन को मिल सकता है क्योंकि चीन प्रोपेगंडा करने में माहिर है। वह मीडिया द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग का फायदा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किस तरह उठाएगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। -जैसा कि विशेष सेवा मेडल प्राप्त सेवानिवृत्त बिग्रेडियर आर विनायक ने बताया।


लद्दाख में आमने सामने की झड़प नहीं होती थी बेनर दिखाते थे और हट जाते थे

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल मिलन नायडू

जिस इलाके में अभी तनाव का माहौल बना हुआ है वहां पर पहले भी चीनी सेना और भारतीय सेना आमने सामने रहती थी। मैंने उस इलाके में तीन बार कोर कमांडिग की है। न तो चीनी हिंदी जानते है और न भारतीय सैनिक चीनी। ऐसे में दोनों देश की सीमा पर पेट्रोलिंग कर रही टीम अपने साथ बड़े बड़े बैनर रखती थी। जिसमें भारतीय सैनिक चीनी भाषा में बैनर दिखते हुए बताते थे कि वे हमारे इलाके की सरहद में घुस आए है और उनका दावा होता था कि भारतीय सैनिक पीछे हटे यह इलाका उनका है। अक्सर चीनी सैनिक यह हिमाकत करते थे कि हमारे क्षेत्र को अपना बनाकर वह भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश करते थे। इस बार तो गलवान में  चीनी सैनिकाे ने जो हरकत की है उसका भारतीय सेना ने मुंह तोड़ जबाव दिया है। जिसमें हमारे बीस जवान शहीद हो गए है। इनकी भारतीय सीमा में अपना बताकर घुसने के आदत पुरानी है। – जैसा कि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल मिलन नायडू ने बताया