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1932 को संवैधानिक बाध्यता मिलने का इंतजार या 2016 से पहले की नीति

नयी नियोजन नीति एवं नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अब अभ्यर्थियों से ही हेमंत सोरेन सरकार ले रही सुझाव, सीएम पूछ रहे- क्या करें..  
जेएसएससी में फॉर्म भरने वाले अभ्यर्थियों को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की तरफ से पहले आ रहा मैसेज, फिर सीएम की आवाज में रिकॉर्ड कॉल.

Nitesh Ojha

Ranchi: हाईकोर्ट के फैसले के दो माह बाद भी नई नियोजन नीति और नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर हेमंत सोरेन सरकार कोई भी ठोस निर्णय नहीं ले पायी है. सरकार असमंजस में है कि क्या करें या नहीं. सरकार अगर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट जाती है, तो नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने में काफी समय लगेगा. अगर नियोजन नीति में संशोधन करती है, तो उसमें भी अभ्यर्थियों द्वारा पेंच लगाया जा सकता है. ऐसे में सरकार अब 2016 से पहले की नीति के आधार पर भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने पर भी विचार कर रही है.

दरअसल, झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) अंतर्गत निकाले गए विज्ञापन को भरने वाले अभ्यर्थियों के पास मैसेज और फोन आ रहा है. दोनों में नई नियोजन नीति और नियुक्ति प्रक्रिया पर सुझाव मांगा जा रहा है. मैसेज और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की रिकॉर्ड आवाज में यह फोन सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की तरफ से अभ्यर्थियों को आ रहा है.

दो तरह से अभ्यर्थियों से किया जा रहा संपर्क

सीएम की आवाज के रिकॉर्ड कॉल से पहले BB-600025 नंबर से अभ्यर्थियों को एक मैसेज आता है. मैसेज में लिखा होता है –

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“जोहार. माननीय मुख्यमंत्री जी नियोजन नीति एवं नियुक्ति प्रक्रिया पर आपकी राय जानना चाहते हैं. इस विषय पर कुछ ही समय के बाद आपको कॉल किया जाएगा. धन्यवाद. जोहार.‘

फिर मुख्यमंत्री के रिकॉर्ड आवाज पर अभ्यर्थियों के पास एक कॉल आती है, जिसमें वे बोल रहे हैं.

“हम या तो हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें. या जबतक 1932 की खतियान आधारित नियोजन नीति और पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण नीति के विषय को नौंवी अनुसूची में संरक्षण नहीं मिल जाता, तबतक के लिए 2016 से पहले की नियोजन नीति को बहाल करते हुए नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं. वे युवाओं की राय जानना चाहते हैं कि क्या पूर्व की नियोजन नीति के आधार पर भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाए. हां या नहीं में अपना उत्तर दें.

क्या थी 2016 से पहले की नियोजन नीति

तय है कि अब राज्य सरकार 2016 से पहले की नीति पर भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने पर विचार कर रही है. 2016 से पहले की नीति के तहत नियुक्ति के लिए निकाले गए विज्ञापनों में 50 प्रतिशत पद आरक्षित होते थे. बाकी 50 प्रतिशत (झारखंडी और गैर-झारखंडी) के लिए ओपेन था. अभ्यर्थी जब विज्ञापन फॉर्म भरते थे, तो उनसे केवल पूछा जाता था कि क्या आप झारखंड राज्य के निवासी है – हां या नहीं. अगर ‘हां’, तो एक कॉलम में आधार कार्ड नंबर भरने को कहा जाता था.

सीएस ने नीति में संशोधन पर सहमति दी, पर अंतिम निर्णय सीएम पर छोड़ा

16 दिसंबर 2022 को झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सरकार की बनायी नियोजन नीति-2021 को रद्द कर दिया था. नयी नीति को लेकर बीते 11 जनवरी को मुख्य सचिव सुखदेव सिंह की अध्यक्षता में विभिन्न विभागों के सचिव के साथ एक बैठक हुई थी. बैठक में पूर्व की नीति के दो प्रस्तावों को हटाने पर मौखिक सहमति बनी. हालांकि अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री पर छोड़ा गया था.

पहला –राज्य में अवस्थित मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों से अभ्यर्थियों का मैट्रिक/10वीं तथा इंटरमीडिएट/10+2 का उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता हटायी जाए.

दूसरा – अभ्यर्थी को स्थानीय रीति-रिवाज, भाषा एवं परिवेश का ज्ञान होने की अनिवार्य हटे.

आखिर! क्यों खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही राज्य सरकार
सचिवों की बैठक में क्षेत्रीय भाषा में हिंदी विषय जोड़ने या नहीं जोड़ने पर कोई सहमति नहीं बनी. नियोजन नीति के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका हिंदी विषय नहीं जोड़े जाने के खिलाफ भी हुई थी. अब अगर सरकार हिंदी को नहीं जोड़ती है, तो मामला फिर हाईकोर्ट में जा सकता है.
सरकार के कार्यकाल के 22 माह ही शेष है. अभी तक के कार्यकाल में युवाओं को रोजगार देने में सरकार पूरी तरह से विफल रही है. रोजगार देना सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का चुनावी वादा था. सरकार जल्द ही नियोजन प्रक्रिया शुरू नहीं करती है, तो चुनाव के समय पार्टी को जाना परेशानी का कारण बन सकता है.
रामगढ़ उपचुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी के नामांकन पर पहुंचे स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता को युवाओं के विरोध का सामना करना पड़ा था. युवा नियोजन नीति नहीं बनने और रोजगार नहीं मिलने से नाराज थे.