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म.प्र. की तीसरी सबसे बड़ी कोल जनजाति का भारतीय धर्म और स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान

कोल जनजाति मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है। मध्यप्रदेश में कोल जनजाति की 10 लाख से भी ज्यादा जनसंख्या मुख्य रूप से रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना एवं सिंगरौली जिलों में पाई जाती है। कोल जनजाति मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, असम, पश्चिम बंगाल एवं छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भी पाई जाती है। यह जनजाति खरवार समूह की एक प्राचीन जनजाति है। यह अपना संबंध राम भक्त शबरी माता से मानते हैं। महर्षि पाणिनी के अनुसार कोल शब्द कुल से निकला है, जो ‘समस्त’ का भाव-बोधक है।

मध्यप्रदेश की जनजातीय विरासत के इस अहम हिस्से, कोल जनजाति के महत्व को सेलीब्रेट करने के लिये सतना में 24 फरवरी को कोल जनजाति महाकुंभ मनाया जा रहा है। महाकुंभ में केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह एवं मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान हिस्सा लेंगे। महाकुंभ में कोल जनजाति एवं स्थानीय लोगों को कई सौगातें मिलेंगी।

कोल जनजाति मुख्य रूप से वनोपज संग्रहण, कृषि एवं मजदूरी के माध्यम से जीविकोपार्जन करते हैं। सरकार द्वारा जनजातियों के विकास के लिये संचालित योजनाओं एवं औद्योगीकरण बढ़ने के साथ इनका भी विकास हुआ है। अब इनके बच्चे भी उच्च शिक्षा में आगे आ रहे हैं।

कोल जनजाति की पंचायत को गोहिया एवं मैयारी कहते हैं। पंचायत का मुखिया गोटिया कहलाता है। पंचायत में लिये गये निर्णय सभी को मान्य होते हैं। कोल जनजाति में पितृ सत्तात्मक समाज होता है। इनमें 12 गोत्र पाये जाते हैं, समगोत्रीय विवाह वर्जित होते हैं। कोल जनजाति का वर्णन रामायण, महाभारत एवं मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी कोल जनजाति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस जनजाति ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के विरुद्ध वर्ष 1831 में कोल विद्रोह किया था। इस विद्रोह का नेतृत्व बुधू भगत और मदारा महतो ने किया था। यह विद्रोह असमानता, शोषण और अत्याचार के विरूद्ध जनजातियों के लिये प्रेरणा का स्रोत बना। इसके बाद अन्य कई जनजातियों ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद की।