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नृत्य की लय गतियों में खजुराहो में आनंद की अनुभूति

खजुराहो नृत्य समारोह में विभिन्न शैलियों के नृत्यों को अपनी देह में समाए नर्तक और नर्तकियाँ जब खजुराहो के विस्तीर्ण मंच पर देह गतियों से प्रस्तुत करते है तो हर तरफ आनन्द छा जाता है। समारोह के पाँचवे दिन भी कथकली, कथक और भरतनाट्यम के वैभव की चमक दमक में रसिक आनंदित होते रहे। समकालीन नृत्यभावों के जरिये सभी कलाकारों ने दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी।

समारोह की शुरूआत आकाश मलिक एवं रूद्र प्रसाद राय की कथकली एवं समकालीन नृत्य की युगल प्रस्तुति से हुई। आकाश और रुद्र की जोड़ी ने इस नृत्य में भीम औऱ हनुमान के संवाद की लीला को पेश किया। भीम को अपने बलशाली होने पर अभिमान होता है, जिसे बुजुर्ग हनुमान ध्वस्त करते हैं। महाभारत की यह कथा सभी ने सुनी और पढ़ी है। हनुमानजी जंगल में बैठे तपस्यारत हैं भीम उनकी तपस्या को बाधित करते है, अपने को बलशाली होने का भीम को घमंड है, जिसे हनुमानजी तोड़ देते है। आकाश ने इस नृत्य संयोजन में हनुमान औऱ रूद्र ने भीम की भूमिका में बढ़िया नृत्याभिनय किया है। कर्नाटकीय संस्कृत निष्ठ गीत संगीत से सजी इस प्रस्तुति में आकाश ने कथकली और रूद्र ने समकालीन नृत्यभावों के जरिये दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी। 

शाम की दूसरी प्रस्तुति प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना शाश्वती गराई घोष के ओडिसी नृत्य की थी। खजुराहो के मंच पर उन्होंने “जय देवा हरे ” नृत्य रचना से अपने नृत्य की शुरूआत की। कृष्ण कहें या भगवान विष्णु अथवा राम उन्ही का महिमा गान इस प्रस्तुति की भावभूमि में था। वास्तव में यह एक शुभ नृत्य था जो हमारी चेतना के साथ प्रतिध्वनित होता है। नृत्य रचना खुद शाश्वती की गढ़ी हुई थी, संगीत निर्देशन सृजन चटर्जी का था। उनकी दूसरी नृत्य रचना माया मानव की थी। विश्वनाथ खुंटीया द्वारा लिखित विचित्र रामायण से ली गई मृग मारीच या सुनहरे हिरण की कथा को शाश्वती ने ओडिसी के नृत्यभावों से बड़े ही सहज ढंग से पेश किया। इस प्रस्तुति के जरिये शाश्वती ने यह दिखाने की कोशिश की है कि माया इंसान को इस कदर जकड़ लेती है कि वह चाह कर भी नहीं छूट पाता। इस प्रस्तुति में नृत्य संयोजन श्रीमती शर्मिला विश्वास का था, जबकि संगीत रचना रमेशचंद्र दास और विजय कुमार बारीक की थी। नृत्य का समापन उन्होंने निर्वाण से किया। इस प्रस्तुति में पखावज पर विजय कुमार बारिक, गायन पर राजेश कुमार लेंका, वायलिन पर रमेश चंद दास एवं बांसुरी पर परसुरामदास ने साथ दिया।

नृत्य सभा का समापन बाला विश्वनाथ और प्रफुल्ल सिंह गेहलोत के भरतनाट्यम और कथक नृत्य की जुगलबंदी से हुआ। बाला भरतनाट्यम करती हैं और प्रफुल्ल कथक। इस प्रस्तुति में दोनों नृत्यानुशासनों के 16 कलाकारों ने भागीदारी की। समूह ने भगवान विष्णु के दशावतारों पर अपनी नृत्य प्रस्तुति दी। कन्नड़ ओर संस्कृत की रचनाओं पर भरतनाट्यम औऱ कथक के विभिन्न नृत भावों और आंगिक अभिनयों से दोनों की विष्णु के अवतारों को साकार करने की कोशिश सफल हुई। इसमें जहाँ कथक के तोड़े टुकड़ों का इस्तेमाल किया गया तो वहीं भरतनाट्यम की पल्लवी का भी इस्तेमाल देखने को मिला। यह प्रस्तुति भी खूब सराही गई।