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प्रदेश के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा का दिल्ली दौरा राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है

जबकि उन्हें मध्य प्रदेश में बुधवार (1 जुलाई) से शुरू हुए ‘किल कोरोना अभियान’ में शामिल होना था। इस कार्यक्रम के समापन के बाद ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बयान ने हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा, ‘‘जब भी मंथन होता है, अमृत निकलता है। अमृत तो बंट जाता है, लेकिन विष शिव पी जाते हैं।’’


मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन इस बीच ये भी कहा जा रहा है कि प्रदेश की राजनीति में अभी भी कुछ बड़ा हो सकता है। अगर राजनीतिक मजबूरियों के चलते अभी नहीं हुआ तो 2020 के अंत तक हो जाएगा। इधर तीन दिन से दिल्ली में जमे मंत्री नरोत्तम मिश्रा इस दौरान किससे मिले और क्या बातचीत हुई इसका ब्योरा नहीं मिल पाया है। बताया जा रहा है कि वे केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में नए चेहरों को शामिल करने की बात सामने आई है। ये सुझाब नरोत्तम मिश्रा का ही था। नरोत्तम मिश्रा गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। अमित शाह अपनी भोपाल यात्रा के दौरान हमेशा नरोत्तम मिश्रा के यहां ही भोजन के लिए जाते हैं।  शिवराज सिंह रविवार की शाम को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और संगठन मंत्री सुहास भगत के साथ दिल्ली में रवाना हुए थे। रविवार दोपहर तक पार्टी के आला नेताओं से मेल मुलाकात और मंत्रिमंडल विस्तार के बारे में हो रही बातचीत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मनमाफिक दिशा में जा रही थी। भोपाल भी ऐसी ही खबरें आईं कि सबकुछ ठीक है और 30 जून को मंत्रिमंडल विस्तार हो जाएगा।

जेपी नड्डा से हुई थी लंबी बातचीत

शिवराज का अपराह्न 4 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का कार्य़क्रम था। इसी बीच दिल्ली से आए फोन के बाद नरोत्तम मिश्रा विशेष प्लेन से ग्वालियर से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री से बातचीत के बाद कुछ ऐसा हुआ कि शिवराज सिंह का मंत्रिमंडल विस्तार टल गया। मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री निवास से सीधे मध्यप्रदेश भवन पहुंचे और रात में भाजपा कार्यालय में देररात तक राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से बात करते रहे और मंगलवार सुबह साढ़े नौ बजे के करीब भोपाल के लिए रवाना हो गए।  

अच्छा नहीं रहा मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए दिल्ली दौरा काफी कड़वा रहा है। मुख्यमंत्री की चौथी पारी में शिवराज पहली बार सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब मंत्रिमंडल की लिस्ट को केंद्रीय नेतृत्व ने रिजेक्ट कर दिया। इससे पहले तीन कार्यकाल में शिवराज ने जिसको चाहे मंत्री बनाया। हर बार केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज की बात मानी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को शिवराज के पिछले कार्यकालों में लगातार दो या तीन बार मंत्री रहे वरिष्ठ विधायकों को शामिल किए जाने पर भी आपत्ति है।


कैलाश से मिले थे नरोत्तम
बीते गुरुवार को नरोत्तम मिश्रा के आवास पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पहुंचे थे। उसी दिन सीएम शिवराज अपने परिवार के साथ तिरुपति यात्रा पर निकले थे। उनकी गैर मौजूदगी में भाजपा के दो दिग्गज नेताओं की मुलाकात के बाद भाजपा के अंदरुनी समीकरण तेजी से बदले हैं।

भाजपा में बदलाव की शुरुआत

दरअसल, भाजपा की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी एक विशेष कार्यशैली से काम करने के लिए जाने जाते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद बड़े स्तर पर फेरबदल की बात सामने आई थी। आरएसएस भी यही चाहता था कि प्रदेश भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। नए और युवा चेहरे विष्णुदत्त शर्मा को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिया। विष्णुदत्त के अध्यक्ष बनते ही प्रदेश में कमलनाथ सरकार का पतन हो गया औऱ शिवराज सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। पार्टी नेताओं का मानना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रदेश संगठन और केंद्रीय नेतृत्व नए चेहरों को मौका देने के पक्ष में है। यही कारण है कि शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार पर एक बार फिर मंगलवार को टाल दिया गया।

शाह ने की थी बदलाव की शुरुआत

दरअसल, पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन की शुरुआत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने की थी, जिसे राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष आगे बढ़ा रहे हैं। शाह ने 2018 के चुनाव में ही एक सीमा रेखा खींच दी थी, जिसमें मप्र के वयोवृद्ध बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, कुसुम महदेले, रामकृष्ण कुसमरिया जैसे नेताओं के टिकट कट गए थे। इसके बाद भाजपा के संगठन चुनाव हुए तो सबसे पहले मंडल अध्यक्ष के लिए 35 साल की उम्र सीमा तय की गई। इसके बाद जिलाध्यक्षों के लिए भी 50 साल की लक्ष्मण रेखा खींच दी।

किसी एक नेता के साए पार्टी को रखने के पक्ष में नहीं संघ

आरएसएस की मंशा है कि कि प्रदेश में नया नेतृत्व सामने आए और उसे काम करने का मौका मिले। सूत्रों का कहना है कि शिवराज के पिछले कार्यकाल में उन्हें मोदी की टीम में शामिल कर कृषि मंत्री बनाए जाने की चर्चा हुई थी। किन्ही कारणों से ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश भाजपा में लंबे समय से उपेक्षा का शिकार नेताओं में ये चर्चा है कि आखिर शिवराज कब तक। असंतुष्ठ नेताओं ने अपनी बात विशेष माध्यम से आलाकमान तक पहुंचा दी है।