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कोयले की कालिख निगल गई 13000 हेक्टेयर हरे जंगल की हरियाली

जिले में जंगल की हरियाली अब काले कोयले की भेंट चढ़ती जा रही है। नजूल शाखा की भौगोलिक परिसीमन के अनुसार जिले में संचालित 14 कोयला खदान 13 हजार हेक्टेयर भूमि के दायरे में आता है। यह वह भूमि है जहां वर्षों पहले हरियाली हुआ करती थी। अब यहां पेड़ों का नामोनिशान नहीं है। खदान क्षेत्र में भूमिगत जल स्त्रोत नीचे चले जाने के कारण पौधों का पनपना संभव नहीं। वनाच्छादित दायरे में जहां कटघोरा ब्लॉक का 44 फीसदी भू-भाग प्रभावित है, वहीं कोरबा ब्लॉक का 9 फीसदी क्षेत्र कालरी के कारण हरियाली से वंचित हैं।

हरियाली को नष्ट करने जिस गति पेड़ों पर कुल्हाड़ी चली हैं, उसके विपरीत पौधों की रोपणी कम हुई है। पेड़ों की कटाई में केवल कोयला खदान ही नहीं, बल्कि सड़क निर्माण और उसके चौड़ीकरण के लिए की गई कटाई भी शामिल है। प्रतिवर्ष रोजगार गारंटी और वन विभाग की ओर से रोपणी की जाती है, लेकिन सुरक्षा के अभाव में पौधों की तादाद दिनों दिन घटती जा रही है। जंगल से ही वर्षा संभव है। घटती हुई हरियाली खंड वर्षा का सबब साबित हो रही है। जिले में अब तक 1134 मिमी वर्षा हो चुकी है। करतला और कटघोरा क्षेत्र में अब तक कम वर्षा हुई है। अब तक जिन पुराने खदानों में खनन कार्य बंद हो चुके हैं वहां साल, तेंदू, साजा प्रजाति के पेड़ों का पनप पाना मुश्किल है। प्राकृतिक पेड़ों के अनुकूल वातावरण और मिट्टी होने से परिस्थितियां दिनों-दिन बदल रही है। जिले का भौगोलिक परिदृश्य के अनुसार करतला और कटघोरा ब्लॉक मैदानी दायरे में आते हैं। इसके विपरीत कोरबा, पाली और उपरोड़ा पहाड़ी क्षेत्र के दायरे में आते हैं।

औद्योगिक प्रबंधनों के विस्तार के साथ नई कोयला खदान के लिए बुड़बुड़, सरईपाली, गिद्घमुड़ी, नकिया में सर्वे जारी है। जंगलों की कटाई केवल आद्योगिक प्रबंधनों अथवा सड़क चौड़ीकरण में नहीं हुआ, बल्कि इमारती लकड़ी की अवैध कटाई भी इसका मुख्य कारण है।

रही सही कसर राखड़ डेम निर्माण से हो रही है। जिसके विस्तार के चलते उर्वरा भूमि का दायरा कम हो रहा है। हरियाली को बरकरार रखने वन विकास निगम से औद्योगिक प्रबंधन की ओर से पौधारोपण किया जाता है। विगत कई वर्षों पौधा रोपण के लिए अनुबंध नहीं होने विभाग बेकार ही साबित हो रहा है।