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दशहरे पर बन रहे हैं दो शुभ संयोग, विजयी मुहूर्त मे

LagatarDesk :  हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर दशहरे का पर्व मनाया जाता है. दशहरा को विजयदशमी और आयुधपूजा के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में दशहरा का खास महत्व है. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन ही भगवान राम ने लंका नरेश रावण का वध करके माता सीता को बचाया था. इस बार 24 अक्टूबर मंगलवार के दिन दशहरा का पर्व मनाया जा रहा है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि दशमी तिथि 23 अक्टूबर को शाम पांच बजकर 44 मिनट पर प्रारंभ होगी. जोकि अगले दिन यानी 24 अक्टूबर को दोपहर तीन बजकर 14 मिनट कर रहेगी.

विजयी मुहूर्त में होती है विजयादशमी की पूजा

विजयादशमी पर माता दुर्गा की पूजा के साथ ही देवी अपराजिता की पूजा भी होती है. इसी दौरान शस्त्र पूजा भी की जाती है. विजयादशमी की पूजा विजयी मुहूर्त में होती है. विजयी मुहूर्त दो समय होता है. पहला विजयी मुहूर्त 24 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से 02 बजकर 43 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरा विजयी मुहूर्त जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं, तब होता है. अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 तक रहेगा. अपराह्न पूजा का समय दोपहर 01 बजकर 13 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट, गोधूलि मुहूर्त शाम 05 बजकर 43 मिनट से 06 बजकर 09 मिनट और सायाह्न पूजा मुहूर्त शाम 05 बजकर 43 मिनट से 07 बजे तक रहेगा. रावण दहन की बात करें तो यह सूर्यास्त बाद प्रदोष काल में होता है, जो 24 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट के बाद है. रावण दहन का शुभ मुहूर्त रात्रि 07 बजकर 19 मिनट से 08 बजकर 54 मिनट तक है.

दशहरा पर बन रहे हैं बेहद शुभ संयोग

इस वर्ष दशहरे पर दो बेहद खास और दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. ये दोनों शुभ योग रवि और वृद्धि है. रवि योग सुबह 6 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर 3 बजकर 38 मिनट तक रहेगा. इसके बाद शाम को 6 बजकर 38 मिनट से फिर से रवि योग लगेगा और 25 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगा. इसके साथ ही दोपहर 3 बजकर 40 मिनट से वृद्धि योग शुरू होकर पूरी रात तक रहेगा.

भगवान राम ने इसी दिन किया था रावण का वध

हिंदू मान्यता के अनुसार, रावण ने जब माता सीता के अपहरण किया था, उसके बाद रावण और प्रभु श्रीराम के बीच दस दिनों तक युद्ध चला था. अंत में आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का अंत कर दिया. रावण की मृत्यु को असत्य पर सत्य और न्याय की जीत के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. प्रभु राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी इसलिए यह दिन को विजया दशमी भी कहते हैं. दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर भगवान श्रीराम की लंकापति रावण पर जीत की खुशी मनाई जाती है. यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है.

मां दुर्गा ने विजय दशमी के दिन महिषासुर का किया था अंत

हिंदू धर्म के अनुसार, नवरात्र में मां दुर्गा ने 9 दिनों तक असुरों के स्वामी महिषासुर से युद्ध किया था. दशमी के दिन मां ने उस असुर का वध कर विजय प्राप्त की थी. कहा जाता है कि महिषासुर नामक इस दैत्य ने तीनों लोक में उत्पात मचाया था. देवता भी जब इस दैत्य से परेशान हो गये थे. पूरी दुनिया और देवताओं को महिषासुर से मुक्ति दिलाने के लिए देवी ने आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को महिषासुर का अंत किया था. देवी की विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने विजया देवी की पूजा की और तभी से यह दिन विजया दशमी कहलाया. साथ ही इस दिन अस्त्रों की पूजा भी की जाती है. भारतीय सेना भी इस दिन शस्त्रों की पूजा करते हैं.

दशहरे के दिन ऐसे करें पूजा

दशहरा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. इसके बाद गेहूं या फिर चूने से दशहरा की प्रतिमा बनाएं. इसके बाद गाय के गोबर से नौ गोले (कंडे) बना लें. इन कंडों पर पर जौ और दही लगाएं. इस दिन बहुत से लोग भगवान राम की झांकियों पर जौ चढ़ाते हैं और कई जगह लड़के अपने कान पर जौ रखते हैं. इसके बाद गोबर से दो कटोरियां बना लें. एक कटोरी में कुछ सिक्के भर दें और दूसरी में रोली, चावल, फल, फूल, और जौ डाल दें. बनाई हुई प्रतिमा पर केले, मूली, ग्वारफली, गुड़ और चावल चढ़ाएं. इसके बाद उसके समक्ष धूप-दीप इत्यादि प्रज्वलित करें. इस दिन लोग अपने बहीखाता की भी पूजा करते हैं. ऐसे में आप अपने बहीखाते पर भी जौ, रोली इत्यादि चढ़ाएं. ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को भोजन कराएं और सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दें.