मुख्यमंत्री चौहान द्वारा 24 से 27 मार्च तक के लिए विधानसभा का सत्र बुलाया था, जिसमें उन्हें बहुमत साबित करना था। कोरोना संक्रमण के कारण यह संक्षिप्त सत्र चार बैठकों का बुलाया था। इसमें विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य नहीं पहुंचे और नौ मिनट में शिवराज सिंह चौहान ने बहुमत साबित करने के बाद सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया था। इसके बाद 20 से 24 जुलाई तक के लिए मानसून सत्र बुलाया गया था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से सर्वदलीय बैठक में इसे निरस्त कर दिया गया।
अब मध्य प्रदेश विधानसभा के सामने संवैधानिक संकट है, क्योंकि छह महीने (23 सितंबर) के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाया जाना जरूरी है। अब तक विधानसभा की पांच बैठकें ही हुईं राजनीतिक परिस्थितियों और कोरोना महामारी के कारण मध्य प्रदेश के संसदीय इतिहास में इस बार विधानसभा की सबसे कम पांच बैठकें हो सकी हैं।
दो बैठकें कमल नाथ सरकार के कार्यकाल में 16 व 17 जनवरी और 16 व 20 मार्च को हुई थीं। इसके बाद शिवराज सरकार ने बहुमत साबित करने के लिए 24 मार्च को बैठक की थी। इससे पहले मध्य प्रदेश विधानसभा के इतिहास में 1993 में छह बैठकें हुई थीं, लेकिन तब राष्ट्रपति शासन के बाद केवल दिसंबर में ही विधानसभा का सत्र हुआ था। सवाल पूछने से वंचित रह जाएंगे विधायक विधानसभा सत्र की अधिसूचना यदि विलंब से जारी होगी तो विधायकों को जनहित के मुद्दों पर सवाल लगाने का वक्त नहीं मिल पाएगा।
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