विदाई में इस बार न तो बैंड-बाजे बजे, न रंग-गुलाल उड़े। कोविड 19 के चलते भगवान का विसर्जन इस बार सादगी के साथ किया। हालांकि, इसका भक्तों के उत्साह पर कोई असर नहीं पड़ा। भक्तों ने अगले बरस तू जल्दी आ… जैसे जयकारे लगाते हुए उसी उत्साह से बप्पा को विदा किया, जैसे हर साल करते आए हैं।
राजधानी में गणेश विसर्जन का सिलसिला डोल ग्यारस के साथ 29 अगस्त से शुरू हो गया है। मंगलवार को भी लोग मूर्तियां विसर्जित करने नदी घाट और तालाबों में पहुंचे। महादेवघाट, महाराजबंध तालाब, गुढ़ियारी तालाब समेत शहर के कई तालाबों में सुबह से भीड़ रही। हालांकि, निगम की टीम ने यहां से उन्हें लौटाया दिया और आसपास बने अस्थाई कुंड में प्रतिमाएं विसर्जित करवाईं। निगम से प्राप्त जानकारी के मुताबिक शहर के अलग-अलग इलाकों में बने अस्थाई कुंडों में मंगलवार को 34 सौ के करीब प्रतिमाएं विसर्जित की गईं। इसके अलावा घर और सोसाइटियों में भी लोगों ने अस्थाई कुंड बनाकर मूर्तियां विसर्जित कीं। बाद में इस मिट्टी को घर के गमले या सोसाइटी की गार्डन में डालकर इस पर पौधे लगाए जाएंगे, ताकि बप्पा का साथ पूरे साल बना रहे।
एक के बाद एक त्योहार जहां कोरोना की भेंट चढ़ते जा रहे हैं, वहीं यह महामारी शहर की कई प्राचीन परंपराएं भी तोड़ चुकी है। इसी कड़ी में शहर में पिछले करीब 50 साल से निकल रही विसर्जन झांकियां भी इस बार नहीं निकलीं। गौरतलब है कि कोरोना के चलते ही इससे पहले नवरात्रि पर महामाया मंदिर में ज्योति कलश की स्थापना नहीं की गई थी। वहीं रामनवमी पर दूधाधारी मठ में राघवेंद्र सरकार का स्वर्ण शृंगार नहीं किया गया था। ये दोनों परंपराएं भी करीब 500-600 साल से लगातार निभाई जा रही थीं।
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