सर्दियों के सीजन में जबलपुर में औसतन 300 से 400 करोड़ तक हरे मटर का कारोबार होता है। इसकी सप्लाई उत्तर भारत से लेकर दक्षिण और पूर्वी हिस्सों तक जबलपुर से होती है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि इस हरे मटर का उत्पादन कितना होता है, इसको कितने रकबे में बोया जाता है, कौन सी फसल इसको माना जाए यह कुछ भी निर्धारित नहीं है। सब कुछ किसान अपने स्तरों पर कर रहे हैं।
सरकारी दास्तावेज रिवेन्यू रिकॉर्ड जो फसल को दर्शाते हैं उनमें धान, मक्का, सोयाबीन, मूँग, उड़द इसी तरह गेहूँ, चना, दलहन तो दर्ज हो रहे हैं पर कहीं पर भी मटर का उल्लेख नहीं होता है। इस तरह के हालातों में सीधे तौर पर घाटा यह है कि कोई इस उपयोगी फसल से संबंधित उद्योग यहाँ पर कभी लगाये तो रिकॉर्ड ही नहीं मिल सकता है। मटर हजारों लोगों को लाभ दे रहा है पर जब असली स्थायी लाभ की स्थिति बने तो उस स्तर पर सब कुछ अंदाजिया तरीके से चल रहा है।
कृषि के जानकारों का कहना है कि बोये गये क्षेत्र और उत्पादन का सही डेटा न होने से किसानों को नुकसान है ही, साथ ही उनको भी नुकसान है जो इससे आने वाले समय में कुछ स्थायी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इसकी प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़ सकते हैं। पैकेजिंग अन्य तरहों के फूड प्रोडक्ट बना सकते हैं पर राजस्व रिकॉर्ड में इसकी उत्पादकता निल दिखने से कोई बेहतर उम्मीद अच्छे उत्पादन के बाद नजर नहीं आती है। हर साल सर्दियों में इसके सीजन के समय जन प्रतिनिधि वोटों की फसल बरकरार रहे, इसके लिए इसका मुद््दा जरूर उठाते हैं पर सीजन जाते ही इसको भुला दिया जाता है।
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