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झारखंड में बालू की चौतरफा लूट, दलाल-माफिया राजस्व को पहुंचा रहे नुकसान

झारखंड में बालू का खेल चरम पर है। सरकार के हिस्से का राजस्व दलाल और माफिया उठा ले जा रहे हैं। सालाना 250 से 300 करोड़ रुपये राजस्व देनेवाला यह सेक्टर अधिकृत तौर पर अवैध हाथों में चलता जा रहा है। 400 से अधिक बालू घाट होने के बावजूद अधिकृत तौर पर लगभग 30 खदान ही संचालित हो रहे हैं, लेकिन बालू की कहीं कोई कमी नहीं है।

जाहिर सी बात है कि दलाल और माफिया सरकार के हिस्से का राजस्व हड़प ले रहे हैं। मानसून के बाद बालू खनन शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक हो गए हैं और इस दौरान किसी नई एजेंसी को बालू खनन का पट्टा भी नहीं दिया गया है। झारखंड राज्य खनिज विकास निगम ने वर्ष 2019 के अंत में साढ़े तीन सौ से अधिक घाटों के लिए टेंडर जारी किए थे लेकिन यह फाइनल नहीं हो सका है।

बालू खनन को स्वीकृति प्रदान करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति आवश्यक है और इसके लिए राज्य स्तरीय कमेटी (स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी, सिया) और जिला स्तरीय कमेटी (दिया) को ही खनन की अनुमति देने का अधिकार है। अब राज्य में जिला स्तरीय कमेटी दो साल से निलंबित है और राज्य स्तरीय कमेटी एक साल से अधिक समय तक भंग रहने के बाद एक महीने पहले ही बनी है, लेकिन इस एक महीने में बालू खनन के लिए किसी को अनुमति नहीं दी गई। ऐसे में सवाल उठता है कि खनन हो कैसे रहा है।

बालू खनन अधिकृत तौर पर नहीं होने के कारण इस सेक्टर में दलाल और माफिया सक्रिय हो गए हैं और इन्हीं के माध्यम से लोगों तक बालू पहुंच रहा है। अब अधिकृत एजेंसियों की कमी के कारण बालू का कारोबार पिछले दरवाजे से हो रहा है। पूरे प्रकरण में करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। दलालों और माफिया ने मिलकर बालू की कीमत भी बढ़ा दी है। पिछले वर्ष 12 हजार में एक हाइवा बालू मिलता था लेकिन अभी इसकी कीमत 16 से 17 हजार रुपये है। यह कीमत कुछ दिनों पूर्व तक 20 हजार रुपये के करीब थी।