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फिल्म रिव्यू: साधारण कहानी में असाधारण परफॉर्मेंस का जादू है 'हिचकी'

टीचर्स सभी कि जिंदगी का खास हिस्सा होते हैं जिनकी बातें और यादें तो जिंदगीभर साथ होती हैं और ऐसे में कोई ऐसा टीचर जो अपनी जिंदगी की हिचकियों को परे रख अपने स्टूडेंट्स की जिंदगी को कामयाबी की शिखर तक पहुंचाने में अपनी खुशी ढूंढ लेती है..उन्हें आप क्या कहेंगे… यही कहानी है नैना माथुर (रानी मुखर्जी) की.
नैना ट्यूरेट सिंड्रोम से पीडित हैं, जिसकी वजह से बचपन से ही वो कई बार मजाक का जरिया बन जाती हैं…कई स्कूल बदलने पड़ते हैं…मगर उनका इरादा एक स्कूल टीचर बनने का होता है. आखिरकार नैना माथुर को अपने ही स्कूल में शिक्षा के अधिकार के तहत दाखिल हुए कुछ गरीब बच्चों को पढ़ाने का मौका मिलता है, जिनकी परवरिश झोपड़पट्टी की है और पढ़ाई से जिनका कोसों कोई ताल्लुक नहीं. बच्चे अपनी टीचर नैना माथुर (रानी मुखर्जी) को हर तरीके से परेशान करते हैं और आखिर में नैना उन्हें समझाने में कामयाब होती हैं कि उनमें प्रतिभा का भरमार है बस जरूरत है तो उन्हें सही दिशा देने की…और वो ऐसा करने में कामयाब होती हैं.
ये फिल्म अमेरिकन मोटिवेशनल स्पीकर और टीचर ब्रैड कोहेन जिन्होंने टॉरेट सिंड्रोम के चलते जीवन में कई रुकावटों का सामना किया..और फिर एक कामयाब टीचर बने…उन्हीं के जीवन पर आधारित किताब हाऊ टॉरेट सिंड्रोम मेड मी द टीचर आई नेवर हैड’  पर आधारित है. इस पर 2008 में फ्रंट ऑफ द क्लास नाम से अमेरिकन फिल्म बनी थी. ‘हिचकी’ इसी फिल्म की रीमेक है…जिसकी परिस्तिथियां और किरदारों का काम लाजवाब.

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