लंबी सियासी रस्साकशी के बाद एमपी के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ एमपी के मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन आगे की राह आसान नहीं है, हालांकि, एमपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद उनकी रणनीति और उनके सियासी इतिहास पर नजर डालें तो यह साफ है कि इन परिस्थितियों में बेहतर परिणाम देने में कमलनाथ सफल रहे हैं. कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती किसानों के कर्जा माफी की है कि वे किस तरह इस वादे को पूरा करते हैं, क्योंकि इसमें कोई किन्तु-परन्तु हुआ तो अगले आम चुनाव में भाजपा को आक्रमक होने का बड़ा सियासी हथियार मिल जाएगा.
विस चुनाव के दौरान एमपी में कांग्रेस कामयाब जरूर हुई है, लेकिन भाजपा को मिले मत प्रतिशत पर नजर डालें तो जनता ने भाजपा को पूरी तरह से नकार नहीं दिया है. यह तो पीएम नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार के नोटबंदी, जीएसटी, एससी-एसटी एक्ट संशोधन जैसे निर्णयों की मेहरबानी है जो मतदाता कांग्रेस की ओर चले गए, वरना निर्णय कुछ और भी हो सकता था. कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को नियंत्रित करना सीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. क्योंकि एमपी में भाजपा फिर से सक्रिय होगी और उधर मायावती भी फिर से सियासी हमला करेगी, इसलिए समय रहते कमलनाथ को अपना घर- कांग्रेस को मजबूत करना होगा.
एमपी में भाजपा का जमीनी संगठन मजबूत है और सोशल मीडिया की सेना भी आक्रामक है, इसलिए यदि कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले बेहतर काम करके नहीं दिखा पाते हैं तो आनेवाले समय में कांग्रेस को भाजपा की बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि इन चुनावों ने यह तो साबित कर दिया है कि एमपी में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रादेशिक सरकार के खिलाफ कोई बड़ी सत्ता विरोधी लहर नहीं थी, जैसी कि आशंका व्यक्त की जा रही थी!
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