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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर अगली सुनवाई 10 जनवरी को नई बेंच करेगी। तीन जजों की इस बेंच का गठन 10 जनवरी से पहले कर दिया जाएगा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई की तारीख महज 30 सेकंड में दोनों पक्षों की दलीलें सुने बगैर आगे बढ़ा दी। दो जजों की इस बेंच को जल्द सुनवाई करने और केस नई बेंच के पास भेजने का फैसला करना था।
इस मामले में पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच सुनवाई कर रही थी। ऐसे में दो सदस्यीय बेंच विस्तृत सुनवाई नहीं कर सकती। इस पर तीन या उससे अधिक जजों की बेंच ही सुनवाई करेगी। नई बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई करेगी। दो सदस्यीय बेंच के सामने वकील हरिनाथ राम ने नवंबर में जनहित याचिका लगाकर जल्द से जल्द और हर दिन सुनवाई करने की मांग की थी।
लोकसभा चुनाव की वजह से मंदिर पर राजनीति गरमाई
लोकसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति भी गरमा रही है। केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो यह जनता से धोखा होगा। इसके लिए भाजपा और आरएसएस को माफी मांगनी पड़ेगी। उधर, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही मानना चाहिए। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि न्यायिक प्रकिया पूरी हो जाने के बाद एक सरकार के तौर पर जो भी हमारी जिम्मेदारी होगी हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है।
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