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किसानों को उन्नत किस्म के 1.69 लाख फलदार पौधों का वितरण

बच्चों की पाठशाला का नाम तो आप रोज सुनते होंगे। आज हम आपको एक पौधशाला से रू-ब-रू करा रहे हैं जहां 17 तरह के फलदार वृक्षों के उन्नत किस्म के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। अच्छी गुणवत्ता के फलों की ज्यादा पैदावार देने वाले ये पौधे किसानों को वितरित किए जा रहे हैं। पिछले ढाई वर्षों में इस पौधशाला में तैयार एक लाख 69 हजार पौधे किसानों को बागवानी विस्तार के लिए दिए गए हैं। कुछ सालों में ये फलदार पौधे किसानों की अतिरिक्त कमाई का मजबूत संसाधन बनेंगे।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के भलेसर गांव में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना) और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से 15 एकड़ क्षेत्र में पौधशाला (Nursery) संचालित की जा रही है। वहां फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने पांच सालों की कड़ी मेहनत से 17 किस्म के फलों के मातृवृक्ष तैयार किए हैं। इन वृक्षों से तैयार पौधे अनुवांशिक और भौतिक रुप से शुद्ध एवं स्वस्थ होने के कारण फलों का अधिक उत्पादन करेंगे। इससे किसानों को आमदनी बढ़ाने का अच्छा मौका मिलेगा। इस परियोजना से पिछले पांच सालों में 402 परिवारों को 12 हजार 084 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी मिला है, जिसके लिए उन्हें कुल 20 लाख 18 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया है।   

कृषि विज्ञान केंद्र, महासमुंद ने पांच साल पहले मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से 34 लाख नौ हजार रूपए की लागत वाली इस पौधशाला और फलोद्यान की शुरूआत की थी। महासमुंद विकासखंड के भलेसर में 15 एकड़ भूमि का चिन्हांकन कर अवांछनीय झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण कर सालों से बंजर पड़ी भूमि को उपयोग के लायक बनाया गया। साल भर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए ले-आउट कर गड्ढों की खुदाई की गई। इसमें वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए गड्ढे इस तरह खोदे गए कि दो पौधों के बीच की दूरी के साथ ही दो कतारों के बीच परस्पर पांच मीटर की दूरी रहे। पौधरोपण के लिए एक मीटर लंबाई, एक मीटर चौड़ाई और एक मीटर गहराई के मापदण्ड को अपनाते हुए सभी गड्ढों की खुदाई की गई, जिससे की पौधों में बढ़वार आने के बाद भी उनकी जड़ों को जमीन के अंदर वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। इसके बाद इनमें गोबर खाद, मिट्टी, रेत एवं अन्य उपयुक्त खादों को मिलाकर भराई की गई, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो सके।

कृषि विज्ञान केन्द्र ने उन्नत पौधशाला तैयार करने के लिए पूरे प्रक्षेत्र को 15 भागों में विभाजित कर अलग-अलग फलदार प्रजाति के पौधों का रोपण किया। अनार, अमरुद, नींबू, सीताफल, बेर, मुनगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, कटहल, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोडा एवं इमली के पौधों की रोपाई की गई। परियोजना के तीसरे चरण में अगले दो वर्षों में रोपे गए पौधों की नियमित निंदाई-गुड़ाई की गई। पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए इनकी समय-समय पर कटाई-छटाई भी की गई, ताकि पेड़ के हर हिस्से में सूरज की रोशनी अच्छी तरह पहुंच सके। कीट-फफूंद का प्रकोप रोकने के लिए समय-समय पर कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव भी किया गया।