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लेनी ही पड़ेगी शिक्षकों की मौत की जिम्मेदारी

शिक्षक नेताओं ने कहा- पंचायत चुनाव में संक्रमित होकर जान गंवाने वाले 36 शिक्षकों को मिले 50-50 लाख का मुआवजातीन शिक्षकों की ही मौत का दावा शर्मनाक, शिक्षकों की मौत का मजाक न बनाएं अफसर
बरेली। पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमित होने से सिर्फ तीन शिक्षकों की मौत के दावे के बाद शिक्षकों का गुस्सा थमने में नहीं आ रहा है। शिक्षक संगठनों ने शासन के इस आंकलन को शर्मनाक बताते कहा है कि बरेली में ही चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने से 36 शिक्षकों की मौत हुई है। शासन को इन मौतों की जिम्मेदारी लेकर इन शिक्षकों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए। अनुसचिव सत्य प्रकाश के पत्र को भी फौरन रद्द करना चाहिए।शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षकों को अगर पहले से ही बुखार था तो उन्हें चुनाव ड्यूटी पर भेजा ही क्यों गया और अगर ड्यूटी से लौटकर बीमार होने के बाद उनकी मौत हुई तो सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने से क्यों बच रही है। संगठनों ने जिले में 36 शिक्षकों की कोरोना से मौत का दावा करते हुए एक सुर से अनुसचिव के उस पत्र की निंदा की है जिसमें पूरे प्रदेश में सिर्फ तीन शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु होने की बात कही गई है। यूटा जिलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा कि शासन का आंकलन बहुत शर्मनाक है। उसे शिक्षकों और कर्मचारियों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए।प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष मुकेश सिंह चौहान ने कहा कि मौत की गणना चुनाव ड्यूटी से घर आने जाने के आधार पर की गई है। कोरोना होने पर कई दिन तक जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। शिक्षक समुदाय अपने साथियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देगा। सभी को मुआवजा दिलाया जाएगा। सरकार उनकी मौत को मजाक न बनाए। चुनाव ड्यूटी में सभी कर्मचारी स्वस्थ हालत में गए थे, लौटकर बीमार हुए और लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु हुई। सरकार को अपने मानकों में संशोधन करना चाहिए।
मैं पूरी तरह टूट गया और सरकार जिम्मेदारी से बचना चाह रही है
आलमपुर जाफराबाद में तैनात शिक्षिका नीतू सिंह की भी पंचायत चुनाव के दौरान मृत्यु हुई थी। उनके पति अजय कुमार बीएसएफ में तैनात हैं। उनका कहना है चुनाव ड्यूटी से लौटने के बाद नीतू बीमार हुईं। जांच में पता चला कि उन्हें कोरोना हुआ है। उनकी मृत्यु के बाद परिवार बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं जो यह समझने के भी योग्य नहीं है कि उनकी मां अब नहीं रही। न जाने कितने परिवारों की जिंदगी इसी तरह बर्बाद हुई है। सरकार को बताना चाहिए कि ड्यूटी के दिन क्या उसी को कोरोना संक्रमित माना जाएगा जिसकी घर पहुंचते-पहुंचते ही मौत हो जाती। सरकारी आदेश में कहा गया है कि आरटीपीसीआर रिपोर्ट आए बगैर किसी को कोविड पॉजिटिव कैसे कहा जा सकता है लेकिन यदि ऐसा है तो सरकार ने आइसोलेशन के लिए 14 दिन क्यों तय किए। मैं पूरी तरह टूट चुका हूं, खुद से पूछ रहा हूं कि क्या देश की सेवा करके मैं कुछ गलत कर रहा था। सरकार दुखी परिवारों की जिम्मेदारियों से बचना चाह रही है। सभी शिक्षकों को दिवंगत शिक्षकों के परिजनों को इंसाफ दिलाना चाहिए।
जाने कितने परिवार तबाह हो गए, कम से कम सरकार ऐसा दावा तो न करे
पंचायत चुनाव के दौरान जान गंवाने वाली शिक्षक कंचन कनौजिया बीएसए कार्यालय में तैनात थीं। पति रवींद्र बाबू कहते हैं कि चुनाव ड्यूटी करते ही वह संक्रमित हो गईं। पिछले साल से वह लगातार कोरोना से लड़ने में वह लोगों की मदद कर रही थीं। बीएसए दफ्तर में कोविड हेल्प डेस्क पर भी उन्होंने ड्यूटी की। मास्क बैंक की स्थापना पिछले साल की ताकि लोग इस महामारी से बच सकें। बीमार होने के बाद वह सात दिन तक अस्पताल में कोरोना से लड़ती रहीं और आखिर में यह जंग हार गई। सरकार न जाने किस आधार पर सिर्फ तीन मौत होने का आंकड़ा दे रही है। यह दावा पूरी तरह गलत है। तमाम शिक्षक परिवारों ने अपने सदस्य खोए हैं। कम से कम सरकार इस तरह के आंकड़े पेश न करे।
चुनाव ड्यूटी में न जाते तो मुकदमा दर्ज करा देते, गए तो जान से हाथ धो बैठे
मेरा हंसता-खेलता परिवार था, अब मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। महामारी तो पहले से फैली थी। इसी दौरान चुनाव कराए और पति अजीत कुमार यादव की ड्यूटी चुनाव में लगा दी गई। उनके सामने संकट था कि अगर चुनाव में ड्यूटी करने न जाते तो सरकार मुकदमा दर्ज करा देती। चुनाव में ड्यूटी करने गए तो जान से हाथ धो बैठे। चुनाव में ड्यूटी करके लौटने के बाद ही उन्हें बुखार आ गया था। जांच कराई तो पता चला कि उन्हें कोरोना संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया है। आखिर में हमारे परिवार ने उन्हें खो ही दिया। हमारी दुनिया में कुछ नहीं बचा। सरकार को हकीकत जाननी है तो हम शिक्षकों के परिवार तक आए और देखे हम कैसे किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।

शिक्षक नेताओं ने कहा- पंचायत चुनाव में संक्रमित होकर जान गंवाने वाले 36 शिक्षकों को मिले 50-50 लाख का मुआवजा

तीन शिक्षकों की ही मौत का दावा शर्मनाक, शिक्षकों की मौत का मजाक न बनाएं अफसर
बरेली। पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना संक्रमित होने से सिर्फ तीन शिक्षकों की मौत के दावे के बाद शिक्षकों का गुस्सा थमने में नहीं आ रहा है। शिक्षक संगठनों ने शासन के इस आंकलन को शर्मनाक बताते कहा है कि बरेली में ही चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने से 36 शिक्षकों की मौत हुई है। शासन को इन मौतों की जिम्मेदारी लेकर इन शिक्षकों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए। अनुसचिव सत्य प्रकाश के पत्र को भी फौरन रद्द करना चाहिए।

शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षकों को अगर पहले से ही बुखार था तो उन्हें चुनाव ड्यूटी पर भेजा ही क्यों गया और अगर ड्यूटी से लौटकर बीमार होने के बाद उनकी मौत हुई तो सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने से क्यों बच रही है। संगठनों ने जिले में 36 शिक्षकों की कोरोना से मौत का दावा करते हुए एक सुर से अनुसचिव के उस पत्र की निंदा की है जिसमें पूरे प्रदेश में सिर्फ तीन शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु होने की बात कही गई है। यूटा जिलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा कि शासन का आंकलन बहुत शर्मनाक है। उसे शिक्षकों और कर्मचारियों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए।

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष मुकेश सिंह चौहान ने कहा कि मौत की गणना चुनाव ड्यूटी से घर आने जाने के आधार पर की गई है। कोरोना होने पर कई दिन तक जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। शिक्षक समुदाय अपने साथियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देगा। सभी को मुआवजा दिलाया जाएगा। सरकार उनकी मौत को मजाक न बनाए। चुनाव ड्यूटी में सभी कर्मचारी स्वस्थ हालत में गए थे, लौटकर बीमार हुए और लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु हुई। सरकार को अपने मानकों में संशोधन करना चाहिए।
मैं पूरी तरह टूट गया और सरकार जिम्मेदारी से बचना चाह रही है
आलमपुर जाफराबाद में तैनात शिक्षिका नीतू सिंह की भी पंचायत चुनाव के दौरान मृत्यु हुई थी। उनके पति अजय कुमार बीएसएफ में तैनात हैं। उनका कहना है चुनाव ड्यूटी से लौटने के बाद नीतू बीमार हुईं। जांच में पता चला कि उन्हें कोरोना हुआ है। उनकी मृत्यु के बाद परिवार बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं जो यह समझने के भी योग्य नहीं है कि उनकी मां अब नहीं रही। न जाने कितने परिवारों की जिंदगी इसी तरह बर्बाद हुई है। सरकार को बताना चाहिए कि ड्यूटी के दिन क्या उसी को कोरोना संक्रमित माना जाएगा जिसकी घर पहुंचते-पहुंचते ही मौत हो जाती। सरकारी आदेश में कहा गया है कि आरटीपीसीआर रिपोर्ट आए बगैर किसी को कोविड पॉजिटिव कैसे कहा जा सकता है लेकिन यदि ऐसा है तो सरकार ने आइसोलेशन के लिए 14 दिन क्यों तय किए। मैं पूरी तरह टूट चुका हूं, खुद से पूछ रहा हूं कि क्या देश की सेवा करके मैं कुछ गलत कर रहा था। सरकार दुखी परिवारों की जिम्मेदारियों से बचना चाह रही है। सभी शिक्षकों को दिवंगत शिक्षकों के परिजनों को इंसाफ दिलाना चाहिए।
जाने कितने परिवार तबाह हो गए, कम से कम सरकार ऐसा दावा तो न करे
पंचायत चुनाव के दौरान जान गंवाने वाली शिक्षक कंचन कनौजिया बीएसए कार्यालय में तैनात थीं। पति रवींद्र बाबू कहते हैं कि चुनाव ड्यूटी करते ही वह संक्रमित हो गईं। पिछले साल से वह लगातार कोरोना से लड़ने में वह लोगों की मदद कर रही थीं। बीएसए दफ्तर में कोविड हेल्प डेस्क पर भी उन्होंने ड्यूटी की। मास्क बैंक की स्थापना पिछले साल की ताकि लोग इस महामारी से बच सकें। बीमार होने के बाद वह सात दिन तक अस्पताल में कोरोना से लड़ती रहीं और आखिर में यह जंग हार गई। सरकार न जाने किस आधार पर सिर्फ तीन मौत होने का आंकड़ा दे रही है। यह दावा पूरी तरह गलत है। तमाम शिक्षक परिवारों ने अपने सदस्य खोए हैं। कम से कम सरकार इस तरह के आंकड़े पेश न करे।

चुनाव ड्यूटी में न जाते तो मुकदमा दर्ज करा देते, गए तो जान से हाथ धो बैठे
मेरा हंसता-खेलता परिवार था, अब मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। महामारी तो पहले से फैली थी। इसी दौरान चुनाव कराए और पति अजीत कुमार यादव की ड्यूटी चुनाव में लगा दी गई। उनके सामने संकट था कि अगर चुनाव में ड्यूटी करने न जाते तो सरकार मुकदमा दर्ज करा देती। चुनाव में ड्यूटी करने गए तो जान से हाथ धो बैठे। चुनाव में ड्यूटी करके लौटने के बाद ही उन्हें बुखार आ गया था। जांच कराई तो पता चला कि उन्हें कोरोना संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया है। आखिर में हमारे परिवार ने उन्हें खो ही दिया। हमारी दुनिया में कुछ नहीं बचा। सरकार को हकीकत जाननी है तो हम शिक्षकों के परिवार तक आए और देखे हम कैसे किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।