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कृषि कानून: उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में भी आजमाया जाएगा बंगाल वाला नुस्खा, भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील करेंगे किसान!

अगर कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसानों के बीच समय रहते कोई बात नहीं बनी तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों के दौरान किसान भाजपा के खिलाफ मतदान करने की अपील करेंगे। यह नुस्खा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में काफी कारगर रहा है और किसानों का दावा है कि उनके विरोध के कारण ही भाजपा अपने ‘बंगाल मिशन’ को कामयाब बनाने से चूक गई। किसान अब वही आजमाया हुआ नुस्खा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी आजमाना चाहते हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के सभी 40 किसान संगठनों के बीच इस पर विचार विमर्श चल रहा है और जल्दी ही इस पर एक राय कायम कर ली जायेगी।इसी बीच, कांग्रेस सहित विपक्ष के 12 दलों ने किसानों के 26 मई के बुलाये ‘काला दिवस’ को समर्थन देने का निर्णय किया है। किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के सूत्रों के मुताबिक़, पंजाब से जुड़े तीन शीर्ष किसान संगठन अभी से इस राय के पक्ष में हैं, लेकिन एक किसान संगठन इस निर्णय के पक्ष में नहीं है। वहीं, उत्तर प्रदेश के एक प्रभावी किसान संगठन को छोड़ बाकी सभी किसान संगठन अभी से इस निर्णय के पक्ष में हैं।किसानों ने केंद्र सरकार से बातचीत की फिर से शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। अगर सरकार की तरफ से इस पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आती है तो संयुक्त किसान मोर्चा की अगली कुछ बैठकों में इस पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।
यह होगा मॉडल
पश्चिम बंगाल में किसानों ने राज्य के सभी गांवों तक पहुंचकर किसानों से भाजपा को वोट न देने की अपील की थी। इसके आलावा किसान दूत भेजकर किसानों को कृषि कानूनों के नुकसान और उसके संभावित असर के बारे में जागरूक किया गया था। माना जा रहा है कि अगर केंद्र और किसानों के बीच बात नहीं बनी तो कुछ इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी अभियान शुरू किया जा सकता है।किसान किसी दल विशेष को वोट देने की अपील भी नहीं करेंगे, लेकिन किसानों से भाजपा को वोट न देने की अपील जरूर करेंगे। कई जगहों पर सभाएं आयोजित की जा सकती हैं,  जिसे शीर्ष किसान नेता संबोधित कर सकते हैं।  एक किसान नेता के अनुसार उत्तर प्रदेश में 90 हजार से अधिक गांव हैं। उत्तराखंड को भी शामिल करें तो यह संख्या एक लाख गांवों से अधिक की हो जायेगी। ऐसे में सभी गांवों तक पहुंचने के लिए हमें पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी। चूंकि अगले वर्ष की शुरुआत में  फरवरी-मार्च में ही इन राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न कराए जा सकते हैं, हमें इस साल के अंतिम छह महीनों में ही अपनी रणनीति को अंजाम देना होगा।इसके लिए समय पर निर्णय लेकर उसे कार्यान्वित करने की चुनौती हमारे सामने होगी। यही कारण है कि इस मुद्दे पर जल्द से जल्द चर्चा कर हम निर्णय तक पहुंचना चाहते हैं जिससे इस योजना को अमलीजामा पहनाया जा सके।
केंद्र से सकारात्मक जवाब नहीं मिला
किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रुकी हुई वार्ता को दोबारा शुरू करने और एक निर्णय पर पहुंचने की अपील की थी। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई औपचारिक जवाब नहीं आया है, लेकिन कथित तौर पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि अगर किसान कृषि कानूनों को पूरी तरह खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहते हैं तो वार्ता करने का कोई अर्थ नहीं है। लेकिन अगर किसान इसके आलावा कोई अन्य विकल्प सुझाते हैं तो सरकार वार्ता के लिए तैयार हैं।इधर, किसान नेताओं ने तोमर के इस बयान पर कहा है कि उन्होंने यह आन्दोलन इस बात के लिए शुरू नहीं किया था कि उन्हें सरकार को कोई वैकल्पिक सुझाव देना है। वे तो प्रारंभ से ही इस कानून का खात्मा कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में अगर सरकार इस रुख पर अड़ी रहती है, तो उनके पास भाजपा के बहिष्कार करने की अपील करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं रह जाएगा।
12 दलों ने किया किसानों का समर्थन
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित 12 राजनीतिक दलों ने संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 26 मई को बुलाये ‘काला दिवस’ का समर्थन किया है। यह विरोध किसान आन्दोलन के शुरू हुए छह महीने बीतने के अवसर पर किया जा रहा है। समर्थन पत्र में नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार को तीनों विवादित कृषि कानून तत्काल वापस ले लेना चाहिए, जिससे अन्नदाताओं को इस आपातकाल में महामारी का शिकार होने से बचाया जा सके।