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आगरा-दिल्ली हाईवे पर लापरवाही: खतरनाक रास्तों पर 11 महीने में गई 115 की जान, 46 ब्लैक स्पॉट पर हुए भीषण हादसे

शहर से लेकर देहात में राष्ट्रीय राजमार्ग-2 से लेकर अन्य राजमार्ग पर खतरनाक रास्ते लोगों की जान ले रहे हैं। 46 ब्लैक स्पॉट पर 11 महीने में 175 हादसों में 115 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 137 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इन रास्तों पर संकेतक नहीं लगे होने, अवैध कट से लोगों के निकलने, रोशनी न होने, डिवाइडर नहीं बने होने और ट्रैफिक लाइट के चालू नहीं होने के कारण हादसे हो रहे हैं। सर्दी के मौसम में जोखिम और बढ़ गया है। मार्च में राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर एत्माद्दौला क्षेत्र में शाहदरा के पास तेज रफ्तार स्कॉर्पियो डिवाइडर पर चढ़कर दूसरी तरफ आ गई थी। इससे सामने से आते कंटेनर से टकरा गई थी। हादसे में नौ लोगों की मौत हो गई थी। रामबाग के पास सीता नगर आ रहे तीन भाइयों को अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी थी। हादसे में तीनों की मौत हो गई थी।

डौकी में बिहार से दिल्ली जा रही बस अनियंत्रित होकर लखनऊ एक्सप्रेसवे पर पलट गई थी। शाहगंज में वायु विहार के पास बाइक से जा रहे तीन युवकों की बाइक में अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी थी। हादसे में तीनों की मौत हो गई थी। रुनकता में दो दिन पहले एक बाइक सवार की हादसे में मौत हो गई थी।

एसपी ट्रैफिक अरुण चंद ने बताया कि मार्ग पर जिन जगह पर तीन साल के अंदर पांच से अधिक हादसे हुए होते हैं, उनको ब्लैक स्पॉट के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक ब्लैक स्पॉट का दायरा 500 मीटर तक माना जाता है। इन रास्तों पर यह देखा जाता है कि हादसे की प्रमुख वजह क्या है। इसके बाद उसे समस्या को दूर किया जाता है, जिससे हादसे कम हो जाएं।

जहां रोड इंजीनियरिंग में बदलाव की जरूरत है, वहां संबंधित विभाग के माध्यम से बदलाव किए जाते हैं। संकेतक लगाए जाते हैं। चेतावनी बोर्ड लगाए जाते हैं। सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में ब्लैक स्पाट पर हादसे कम करने को लेकर कवायद पर विचार किया जाता है। कई बार रोड इंजीनियरिंग (सड़क पर गड्ढे, मोड़ पर संकेतक नहीं होने, रोशनी नहीं होना) में कमी की वजह से हादसे होते हैं।

ताजनगरी में इस साल जनवरी से लेकर नवंबर तक 820 हादसे हुए। इनमें 511 की जान गई, जबकि 398 लोग घायल हुए। अब सर्दी का मौसम शुरू हो चुका है। इस मौसम में हादसों का खतरा भी बढ़ जाता है।