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Amit Shah: जालौन में गृह मंत्री अमित शाह का दौरा, क्या सूखे बुंदेलखंड में फिर से खिला पाएंगे कमल?

हाइलाइट्स2017 विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड की सभी सीटें बीजेपी ने जीती थींइस बार महंगाई और बेरोजगारी बीजेपी की बढ़ा सकती है मुश्किलें26 दिसंबर को जालौन में गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा हैविशाल वर्मा, जालौन
बेरोजगारी और पलायन के लिए मशहूर बुंदेलखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था और यहां की 19 विधानसभा सीटों पर कमल खिला था, लेकिन इस बार बीजेपी पार्टी की जीत की राह आसान नहीं है, क्योंकि पार्टी को बेरोजगारी, महंगाई और किसान आंदोलन की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। इसीलिए बुंदेलखंड के लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं ने यहां की कमान संभाली है।

26 दिसंबर को जालौन में गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की विशाल जनसभा है तो वहीं विपक्ष भी बुंदेलखंड में ताबड़तोड़ रैलियां करने में जुटा हुआ हैं। फिलहाल यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता है कि 2017 का मोदी मैजिक यहां की सीटों पर फिर से अपना जादू बिखेरेगा या नहीं।

राजनीति के ध्रुवीकरण का शिकार बुंदेलखंड अभी भी कई यातनाएं झेल रहा है। यही वजह है कि खुद बीजेपी के नेता राजा बुंदेला (बुंदेलखंड विकास बोर्ड अध्यक्ष) के शब्दों में विरोधाभास नजर आने लगा है। उन्होंने अपने पिछले दौरे में कहा था कि बुंदेलखंड के लिए कोई भी सरकार बेहतर नहीं हैं। मतलब साफ था कि उन्होंने अपनी ही पार्टी टारगेट किया था। हालांकि, बीजेपी ने बुंदेलखंड में डिफेंस कॉरिडोर, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे सहित तमाम जल परियोजनाओं की बारिश की है। इसके बाद भी बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई यहां के लोगों के लिए मुद्दा बनी हुई है। कहीं न कहीं किसान आंदोलन ने पूर्वांचल के साथ बुंदेलखंड को भी अच्छा खासा प्रभावित किया है और सरकार से दूरियां बढ़ा दी हैं। इसी खायीं को पाटने का जिम्मा पार्टी के शीर्ष नेताओं ने संभाला है। 26 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह जालौन के उरई जीआईसी ग्राउंड में एक विशाल जनसभा को संबोधित कर कमल खिलाने का प्रयास करेंगे।

बुंदेलखंड वह इलाका, जिसने 2017 बीजेपी को सत्ता के मुकाम तक पहुंचाया
बुंदेलखंड का इलाका एक दौर में बसपा का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन 5 साल पहले बीजेपी ने सपा-बसपा-कांग्रेस का इस पूरे इलाके से सफाया कर दिया। 2017 में बीजेपी ने बुंदेलखंड में अपनी सियासी जड़ें ऐसी मजबूत की कि सपा और बसपा गठबंधन भी 2019 में उसे नहीं हिला सका। सूबे में बीजेपी की सत्ता की वापसी में बुंदेलखंड की अहम भूमिका थी। यही वजह है कि बीजेपी के इस मजबूत किले की दीवार को भेदने के लिए विपक्षी पार्टियों ने अपना माहौल बना दिया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेख यादव (Akhilesh Yadav) ने ‘विजय रथ’ यात्रा और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने ‘प्रतिज्ञा यात्रा’ निकालकर यहां से चुनावी शंखनाद कर दिया है। वहीं, पीएम मोदी (Narendra Modi) ने अपने झांसी दौरे पर बुंदेलखंड में 32 अरब 64 करोड़ 74 हजार रुपये लागत की परियोजनाओं का लोकापर्ण कर अपनी सियासी जड़ों को मजबूत बनाए रखने का दांव चला है।

बुंदेलखंड इलाके में झांसी, ललितपुर, महोबा, जालौन, हमीरपुर और बांदा जिले आते हैं। इन जिलों में कुल 19 विधानसभा सीटें आती हैं, जहां बीजेपी का पूरी तरह कब्जा है, लेकिन इस बार यहां के सियासी माहौल के लिहाज से बीजेपी की सीधी टक्कर समाजवादी पार्टी से मानी जा रही है और यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि बीजेपी को इस बार कुछ सीटों पर हार का सामना करना पड़ सकता है।

बुंदेलखंड की अग्निपरीक्षा में बीजेपी को कितना बहुमत
पिछले विधानसभा चुनाव में यूपी का जातिगत आंकड़ा दलित 21.1%, ओबीसी 41%, मुस्लिम 19.3%, सवर्ण 23% था, लेकिन बीजेपी ने मुस्ल‍िमों को लुभाने के लिए सपा-कांग्रेस अलायंस या बसपा जैसी स्ट्रैटजी नहीं अपनाई। उसने शहरी और ग्रामीण इलाकों के युवाओं पर फोकस किया और यह बताने में हासिल की कि अब प्रदेश में राजनीति से उठकर विकास व रोजगार के मुद्दों पर लड़ाई लड़ने की बात कही थी। इसी बात का फायदा बीजेपी को बुंदेलखंड में प्रंचड बहुमत के रूप में मिला। अब यही विकास की डोर बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर रही है, क्योंकि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी युवाओं के लिए मुद्दा बनी हुई है। यूपी में युवाओं की सरकारी भर्ती और पेपर लीक मामले ने बीजेपी की सुशासन की नीति पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। विपक्षी दल इन्हीं कमियों को मुद्दा बनाकर युवाओं के वोट को साधने का प्रयास कर रहे हैं तो ऐसे हालातों के बीच क्या बीजेपी फिर से कैसे युवाओं को साधकर अपना खिसक रहा बहुमत हासिल कर पाने में कामयाब होगी?

1991 के बाद 2017 में छुआ था दहाई अंक, 2022 बना चुनौती
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Vidhansabha Chunav 2022) के लिए बुंदेलखंड में इस बार जोरदार घमासान होने के आसार हैं। बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। बीजेपी के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराने का दबाव है। बुंदेलखंड विधानसभा चुनावों में 1991 में बीजेपी को यहां से सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। तब बीजेपी 11 सीटों पर जीती थी। उसके बाद से बीजेपी यहां पर दहाई के अंक तक को नहीं छू पाई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ी सफलता मिली और सभी 19 सीटें जीतीं। क्या फिर से इस बार भी यहां पर बीजेपी का जलवा बरकरार रहेगा?