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Editorial: पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को मिले शरण

4-1-2022

पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार झेल रहे हिंदुओं को अपना घरबार छोड़कर मजबूरी में भारत में शरण लेनी पड़ती है। जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, तब लाखों हिंदुओं ने महात्मा गांधी के आवाहन पर कांग्रेस के साथ देश की आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। तब पश्चिमी पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, पूर्वी बंगाल सहित वे सभी इलाके जो वर्तमान पाकिस्तान व बांग्लादेश का हिस्सा है, वहां के हिंदुओं ने कांग्रेस का साथ दिया, जिससे वह एक लोकतांत्रिक भारत के नागरिक बन सकें।

हालांकि, वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ, तो इन इलाकों में रहने वाले हिंदुओं को इस्लामिक गणतंत्र की गुलामी उपहार स्वरूप मिली। उनसे बिना पूछे कांग्रेस ने उन्हें पाकिस्तान का निवासी बना दिया। मोहम्मद अली जिन्ना से सहमति के बाद कांग्रेस ने विभाजन स्वीकार कर लिया! उन हिंदुओं के साथ तब भी धोखा हुआ और आज भी धोखा हो रहा है। आज भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत में तमाम तरह की कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं, लोकतांत्रिक भारत की सुविधाओं का लाभ उन लोगों को मिल रहा है, जिन्होंने कभी देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, जिनकी आत्मा हिन्दू भारत में बसती है और जो भारत की भूमि पर जन्मे हैं।

मौजूदा समय में देश की राजधानी में दो तरह के विदेशी हैं, एक शरणार्थी हिन्दू, जिन्हें विदेशी क्यों माना जाए इसका कोई उत्तर नहीं, दूसरे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम, जो इस देश की भूमि पर क्यों हैं, इसका कोई उत्तर नहीं है। यह विडंबना है कि भारत में हिंदू शरणार्थी हासिये पर हैं और घुसपैठियों को सुविधाएं मिल रही है!

दिल्ली में अवैध तरीके से रह रहे मुस्लिमों को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसका प्रबंध करने के लिए स्वयं उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 में भारत सरकार से जवाब तलब किया था। वहीं, दूसरी ओर हिंदू शरणार्थी हैं, जिनके शिविर में होने वाली जल और बिजली की आपूर्ति स्वयं केंद्र सरकार ने काट दी है। केंद्र ने यह कार्रवाई इसलिए की है, क्योंकि शरणार्थियों ने DRDO के लिए आवंटित भूमि पर टेंट बना लिए थे। निश्चित रूप से केंद्र की कार्रवाई का वैधानिक आधार है, लेकिन क्या यह प्रश्न नहीं उठना चाहिए कि उन शरणार्थियों को बदले में कोई सुविधा दी जाएगी या नहीं। मजनू का टीला क्षेत्र में रह रहे 700 हिंदू परिवार, जो पाकिस्तान से भागकर भारत आए हैं, पिछले 5 वर्षों से बिजली आपूर्ति का इंतजार कर रहे हैं। जिसकी सुध न केंद्र सरकार ले रही और न ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार।

ध्यान देने वाली बात है कि दिल्ली की AAP सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को सहायता दे रही है। कोरोना काल में इन्हें मुफ्त राशन भी दिया गया। उत्तर प्रदेश जल निगम की भूमि पर AAP विधायक अमानुतुल्लाह खान ने जबरन कब्जा कर, रोहिंग्याओं को बसा दिया था। दिल्ली के मदनपुर खादर क्षेत्र में स्थित उत्तर प्रदेश सरकार की जमीन तब जाकर खाली हुई, जब योगी सरकार ने उस ओर अपने बुलडोजर भेजें। जिसके बाद मिशन नेस्तनाबूद के तहत इन अवैध टेंट को ध्वस्त कर दिया गया था।

वहीं, दूसरी ओर पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं, जिन्हें कोरोना के फैलाव के समय राशन की किल्लत का सामना करना पड़ा। उत्तरी दिल्ली के अरूणा नगर कॉलोनी में 170 हिंदू परिवार शरणार्थी के रूप में रहते हैं। इनकी गंदी बस्तियों से थोड़ी दूर पर तिब्बती शरणार्थियों की कॉलोनी है, जहां दिनभर चहल-पहल रहती है। हिंदू शरणार्थियों से बात करने पर यह पता चलता है कि स्थानीय हिंदू ही उन्हें पाकिस्तानी बुलाते हैं, उन्हें अपना नहीं मानते। हिंदू शरणार्थियों की इस दुर्दशा को लेकर कई तरह के सवाल भी उठते रहे हैं।

सवाल यह भी है कि सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने के बाद, कितनी राजनीतिक संस्थाएं सामने आई, कितने हिन्दू संगठन और मठ-मंदिर इनकी आवाज बनकर सामने आए, इन हिंदू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए आवाज उठाए या फिर इनके लिए काम किया। जवाब है- एक भी नहीं! वक्फ बोर्ड की तरह कोई संस्था इन हिंदू शरणार्थियों की मदद के लिए सामने क्यों नहीं आया? हिंदू शरणार्थी समस्या, हिन्दू समाज पर प्रश्न है, एक समाज के रूप में हम अपने लोगों के लिए कितने जागरूक हैं, यह इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।