गुजरात: 450 दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म, गोहत्या के नाम पर प्रताडि़त किए जाने को बताया वजह
गुजरात में हिंदू समुदाय में अपमानित किए जाने से क्षुब्ध करीब 450 दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। दो साल पहले गिर सोमनाथ जिले की ऊना तहसील में समुदाय के चार लोगों को कथित गोरक्षकों ने बुरी तरह पीटा था।
धर्म परिवर्तन के बाद दलित परिवारों ने कहा कि हिंदू धर्म में हमें सम्मान नहीं मिला और हिंदुओं ने हमें नहीं अपनाया इसलिए हमने बौद्ध धर्म अपनाया है। इस मौके पर सौराष्ट्र क्षेत्र के हजारों दलितों ने हिस्सा लिया।
रविवार को ऊना में बड़ी संख्या में दलित परिवार इक_ा हुए और पूरे रीति रिवाज से बौद्ध धर्म अपनाया। इन परिवारों ने बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला क्यों लिया, इस सवाल पर उनका कहना था कि हिंदुओं ने उन्हें सम्मान नहीं दिया। दलित परिवारों ने कहा, ‘हमें हिंदू नहीं माना जाता और मंदिरों में भी घुसने नहीं दिया जाता। यही वजह है कि हमने बौद्ध धर्म स्वीकार किया है।Ó
जिस समय विश्वहिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा जी थे उस समय विश्व हिन्दू परिषद से सबंधित बजरंग दल ने गुजरात मेें जो कृत्य किया था उसका ही दुष्परिणाम आज देखने को मिला है।
तोगडिय़ा जी का व्यक्तिगत द्वेष नरेन्द्र मोदी जी से होने से हिन्दूरक्षक तोगडिय़ा जी को हमने अनेक बार आग्रह किया था कि वे अहमदाबाद में अनशन न कर कर्नाटक में अनशन करें जहॉ हिन्दुओं को विभाजित करने का षडयंत्र कांग्रेस लिंगायत को अलग धर्म बताकर कर रही है।
ऊना में दलितों की पिटाई और राजस्थान की गौशाला में सैकड़ों गायों की मौत के बाद शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाउनटॉल मीटिंग में ‘गाय के नाम पर हो रही सियासतÓ पर चुप्पी तोड़ी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि कथित गौ रक्षकों की हरकतों से मुझे बहुत गुस्सा आता है। ये रात में अपराधी होते हैं और दिन में गौ रक्षक बन जाते हैं। कथित गौ रक्षकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चेतावनी के बाद हिंदू महासभा ‘प्रधानसेवकÓ के खिलाफ खड़ी हो गई है।
बीबीसी में आज एक समाचार समीक्षा प्रकाशित हुई है : ” नज़रिया: डोकलाम में जो काम यूएन नहीं कर पाया उसे भारत ने कर दियाÓÓ इस समीक्षा का सार है : पश्चिम के देशों ने चीन के बारे में कई मिथ गढ़े हैं. चीन के बारे में मिथों को भारत समेत कई देशों ने बिना कोई चुनौती दिए स्वीकार कर लिया है। डोकलाम मुद्दे की चर्चा करते हुए कहा गया है कि चीन आक्रामक रूप से अपना भौगोलिक विस्तार कर रहा है तो दूसरी तरफ़ ख़ुद को पीडि़त भी बताता है. डोकलाम में उसने ऐसा ही किया। चीन कहते रहा कि भारत ने उसके इलाक़े में घुसपैठ की है. जबकि वह ख़ुद के बारे में बताने की कोशिश करता है कि वह अतीत में इतना बड़ा था और उसे हासिल करने की कोशिश कर रहा है। समीक्षक में आगे लिखा गया है कि यह सवाल कभी नहीं पूछा जाता है कि चीन पर भारत कब हावी रहा. स
यता की गहराई, जनसांयिकी और भूगोल के मामले में एशिया के दूसरे बड़े देश भारत की तुलना असर चीन से की जाती है. या चीन कभी भी भारत पर राजनीतिक रूप से, आर्थिक रूप से और सैन्य रूप से हावी रहा है? यह सब स्वीकारेंगे कि ऐसा नहीं है तो चीन फिर एशिया में शक्तिशाली कैसे है? चीन के मुक़ाबले एशिया के ज़्यादातर हिस्सों में भारत का प्रभाव ज़्यादा रहा है. इसके बावजूद लंबे समय तक पश्चिमी देश एशिया में भारत की उपेक्षा करते रहे. पश्चिम के देशों को लगता है कि एशिया जापान से यांमार तक ही है. इन्हें लगता है कि मंगोलियाई नाक- नश वाले ही एशियाई हैं। एशिया में चीन और भारत : एशियाप्रशा ंत इकनॉमिक कॉर्पोरेशन की स्थापना 1989 में की गई. दावा किया गया कि यह एशिया का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसमें भारत को अलग रखा गया. भारत 2008 में इसका सदस्य बना। इस दृष्टि से चीन को एशिया का शक्तिशाली देश कहा जाते रहा है। स
यता और संस्कृति के लिहाज से देखें तो चीन का भारत में कोई प्रभाव नहीं है. ठीक इसके विपरीत सांस्कृतिक रूप से भारत का प्रभाव चीन में काफी ताक़तवर है. चीन में बौद्ध का प्रभाव जबर्दस्त है. पश्चिम के देशों ने हिन्दुस्तान को एशिया में उपेक्षित रखा. यांमार, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, जापान समेत कई एशियाई देशों में भारत की प्राचीन संस्कृति का जबर्दस्त प्रभाव है. इन देशों में चीन का लंबे समय तक नामोनिशान नहीं रहा है। ऊपर लिखे देशों की संस्कृतियों और कलाओं पर चीन का कोई असर नहीं है. थाइलैंड की पुरानी राजधानी का नाम ही अयोध्या था. इंडोनेशिया और थाईलैंड में तो बौद्ध के साथ हिन्दू संस्कृति का भी काफ़ी प्रभाव है. चीन आर्थिक शक्ति है लेकिन स
यता और संस्कृति का प्रभाव होने में लंबा व़त लगता है।
इण्डोनेशिया एक ऐसा देश जिसका धर्म तो इस्लाम है परंतु संस्कृति है रामायण : या आपके भारत में रामायण भी हैं? इन्डोनेशियाई मुस्लिम महिला ने पूछा। दक्षिण भारतीय देशों के नागरिकों पूछते हैं या आप हिंदुस्तानी हैं? या भारत में हिन्दू हैं? कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर एकमात्र हिंदू मंदिर का चित्र है जो कंबोडिया का एक गौरव ्रठ्ठद्दद्मशह्म् ङ्खड्डह्ल है। या भारत इस प्रकार की हिमत कर सकता है? अफगान हमसे पूछते हैं: या भारत में तालिबानी वंश का शासन है जो राम सेतु को ध्वस्त करना चाहते रहे हैं? तालिबान ने दुनिया की सबसे बड़ी महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट कर दिया। हिंदू- संस्कृति ने अफ गानिस्तान से भारत- चीन (एसई एशिया) और यहां तक कि रूस में भी गहरी जड़ें जमाई थी। अफग़़ानिस्तान (संस्कृत उपगन + स्थावर जो कि देशवासियों की भूमि है) वैदिक काल से एक प्राचीन भूमि है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अशोक चक्र हमें याद दिलाता है, काबुल / कंधार अशोक के तहत मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था और हिंदू शाही राजाओं ने अफ गानिस्तान पर शासन किया था। रूस : विष्णु की मूर्ति रूस में पायी गई अयोध्या वंश के लू और ताक (राम के पुत्र और रामायण में भारत) ने लाहौर (लुवपुर) और तक्षशिला (तक्षशिला) के शहर की स्थापना की।तत ने अपने राज्य के गंधार (कंधार) की स्थापना की जो टैसिला से ताश्कंद (तक्ष्शा खंड) तक फैली हुई थी। ऐसा ताशकंद है जहां लालबाहदुर शास्त्री संदिग्ध हालत में मृत पाया गये थे अर्थात उनकी जहर देकर हत्या की गयी थी। थाईलैंड थाई में सुवर्णभूमि इंटरनेशनल एयर पोर्ट है । या भारत में ऐसा हैं? या हमने किसी हवाई अड्डे में कोई महासागर देखा है? यदि नहीं, तो सुवर्णभूमि हवाई अड्डे में समुद्रमंथन का दृश्य देखें। इंडोनेशिया – गरुड़ एक हिंदू देवता है; इंडोनेशिया की राष्ट्रीय एयरलाइन को गरुड़ के नाम पर रखा गया है। या हमने भारत में किसी का भी गरुड़ नाम रखा है? गरुड का सच राम सेतु अमेरिका में संग्रहालय में है। नासा के बाद अब रामायण के गरुड न्यूयॉर्क स्थित अमेरिकन युजियम में विराजमान है।
मोदी विरोध के चलते राहुल गांधी जैसे यशवंत सिन्हा का देशविरोध?
पाक फंडेड अलगाववादी हुर्रियत के बाद अब स्पर्श कर रहे हैं पत्थरगढ़ी?
भाजपा के वरिष्ठतम नेता कैलाश सारंग जी ने कुछ समय पूर्व कहा था कि उन्होंने अपने जीवन में सबसे बड़ी गलती यशवंत सिन्हा को अटल जी से मुलाकात करवाकर और यह कहकर कि ये प्रशासनिक अधिकारी रहते हुये अच्छा कार्य किये हैं इनका उपयोग भाजपा के किया जाये। इसके बाद जनता दल से यशवंत सिन्हा जी भाजपा में आये। इसके आगे सारंग जी ने कहा कि अब यशवंत की चाहत राज्यपाल बनने की है। उनके इस वक्तव्य का यशवंत सिन्हा ने संभवत: कभी खंडन नहीं किया है।
भाजपा में प्रवेश करने के बाद उनका कार्यक्रम रायपुर में भी यहॉ के नगर निगम के पुराने कार्यालय के एक हॉल में हुआ था। उस समय मैं उनके कार्यक्रम में उपस्थित था।
अटल जी के मंत्रीमंडल में रहने के उपरांत उन्होंने भाजपा से कुछ नाराजगी प्रकट की थी। उसके उपरांत उनके सुपुत्र को वर्तमान मोदी मंत्रीमंडल में स्थान मिला। बावजूद इसके वे विद्रोह पर उतारू हैं। उनका साथ अटल जी के मंत्रीमंडल में रहे शत्रुघन सिन्हा साथ रहा है। यहॉ यह उल्लेखनीय है कि कैलाश सारंग, यशवंत और शत्रुघ्र सिन्हा कायस्थ समाज से ताल्लुक रखते हैँ।
शत्रुघ्र और यशवंत सिन्हा को कुर्सी न मिलने से वे मोदी विरोध के रास्ते पर चल पड़े। मोदी विरोध के चलते-चलते वे पाक फंडेड अलगाववादी हुर्रियत के नेता से भी मिलने के उपरांत उनकी भी पैरवी करने लगे।
वहॉ से चलते हुये अब वे पत्थरगढ़ी को स्पर्श करने के लिये चल पड़े हैं। यशवंत जी का संबंध रांची से है। रांची और जशपुर में अधिक दूरी नहीं है।
मोदी विरोध तो शह्य हो सकता है परंतु देशविरोध राष्ट्रवादी शक्तियां सहन नहीं करेंगी।
राहुल गांधी का रास्ता इन्होंने अपनाया हुआ है। राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री बनने की लालसा में मोदी विरोध करते-करते देशविरोध के रास्ते पर चल पड़े हैं।
कन्हैय्या कुमार, उमर खालिद और हार्दिक पटेल जिनपर देशद्रोह के मुकदमें चल रहे हैं वे राहुल गांधी के मुख्य सिपहेसालार हैं। इनकी पीठ थपथपाने के लिये अफजल गुरू के शहीदी दिवस के समय आजादी के नारे जब लग रहे थे उस समय वे उनकी पीठ थपथपाने के लिये जेएनयू भी पहुंच गये थे।
जनेऊधारी ब्राम्हण का बहुरूपीया रूप धारण कर वे हिन्दुओं की आंखो में धूल झोंक रहे हैं। दूसरी ओर हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बनाने की चाल चलकर लिंगायत को हिन्दुओंं से अलग कर रहे हैं।
एक-दो दिनों पूर्व की ही घटना है कि उन्होंने कर्नाटक में, मैंगलोर में वंदे मातरम राष्ट्रगीत का अपमान किया है। होना तो यह चाहिये कि इस अक्षम्य अपराध के कारण उन पर केन्द्र सरकार देशद्रोह का मुकदमा दायर करे।
हमें विश्वास है कि सिन्हा बंधु भाजपा के शत्रु भले ही बनें पर देश के शत्रु न बनें। कांग्रेस का काला इतिहास तो किसी से छिपा ही नहीं है। उससे बचकर राष्ट्रवाद के रास्ते पर चलें तो उन्हें जनता का समर्थन मिल सकता है।
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