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Editorial :- संघ का राष्ट्रवाद Vs कांग्रेस का अलगाववाद

कांगे्रस अलगाववाद की द्योतक है। यही कारण है कि हामिद अंसारी उप राष्ट्रपति पद से हटने के तुरंत बाद सबसे पहला जिहादी कट्टरपंथी  अलगाववाद का प्रतीक बनकर आईएसआई से संबंधित केरल के संगठन पीएफआई के एक समारोह में सम्मिलित हुये। इस दृश्य को देखकर बहुरूपीये जनेऊधारी ब्राम्हण राहुल गांधी और उनकी माता जी काफी प्रसंन्न थी। कांगे्रस चूंकि जनमत से नहीं जनपथ से चलती है इसलिये नेहरू-गांधी डायनेस्टी के अंधभक्त कांग्रेस के नेता का खुशी से उछलना तो स्वाभाविक था।
यही स्थिति बाद में भी किस प्रकार से रही इसका कुछ चित्रण यहॉ दे रहा हंू।
गुजरात विधानसभा चुनाव के समय हिन्दुओं  के वोट बटोरने के लिये जनेऊधारी ब्राम्हण  कहलाने का ढ़ोंग करते हुए राहुल गांधी मंदिरों के  द्वार-द्वार खटखटाए थे। दूसरी तरफ मुसलमानों का  वोट हथियाने के लिये कांग्रेस के स्टार प्रचारक थे बुरहान वानी को हीरो मानने वाले हुर्रियत के भक्त  सलमान निजामी।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रारंभ होनेके पूर्व कांग्रेस की कर्नाटक सरकार के मंत्रिमंडल ने मुस्लिम संगठनों के  जिहादी मोर्चा (पीएफआई) और कर्नाटक फोरम  फॉर डिग्निटी (केएफडी) के कार्यकर्ताओं के  खिलाफ  मामला वापस लेने का फैसला किया।  जिन्हें हाल के वर्षों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में  दंगे के लिए केरल से बुलाया गया था।
गांधी डायनेस्टी के लिये कोई नई बात नहीं है। पंडित नेहरू से लेकर अन्य सभी वंशज अपने- अपने शासनकाल में वोटबैंक पॉलिटिस बांटा और राज करो की नीति पर चलते रहे हैं।
यहॉ यह उल्लेखनीय है कि जिग्रेश को गुजरात  चुनाव के समय जिहादी संगठन पीएफआई से  आर्थिक सहायता मिली थी।
ऊमर खालिद के पिता जी सिमी आतंकवादी  संगठन के पदाधिकारी रह चुके हैं। पीएफआई  इसी प्रतिबंधित संगठन सिमी का नाम बदला हुआ रूप है।  ऊमर खालिद, कन्हैय्या कुमार और हार्दिक  पटेल पर देशद्रोह के मुकदमे कायम हैं। इन्हीं अपने सिपहेसालारों के आधार पर राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का स्वप्र देख रहे हैं।
इसे और अधिक स्पष्ट मैं यहॉ करना उचित  समझता हूं। यूपीए शासन में दो गृहमंत्री सुशील  शिंदे और पी. चिदंबरम हुए। दोनों ने ही हिन्दू  आतंकवाद, भगवा टेरर का झूठ फैलाया।
समझौता  ब्लास्ट में पाकिस्तान के दो नागरिकों को पुलिस ने  गिरफ्तार किया था। हिन्दुओं को बदनाम करने  और पाकिस्तान को खुश करने के लिये समझौता एसप्रेस और मालेगांव ब्लास्ट के केस में निर्दोष  करनल पुरोहित और प्रज्ञा भारती को जेल में ठूंस  दिया गया।
यूपीए शासन तो चाहता था कि उक्त केस में संघ प्रमुख मोहन भागवत जी को भी  गिरफ्तार कर लिया जाए। परंतु इस सोच के तुरंत बाद यूपीए शासन की समाप्ति से उनका षडयंत्र सफल नहीं हो पाया।
अब ७ जून को संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मिलित होने और राष्ट्रवाद पर भाषण देने की स्वीकृति दे दी है, इससे कांग्रेस के कुछ नेता आहत हैं।
सेनाध्यक्ष विपिन रावत को सड़क का गुंडा कहने वाले संदीप दीक्षित ने पूर्व राष्ट्रपति के इस कदम की भर्तस्ना की है।
प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में शिरकत न करें इसे लेकर सीनियर कांग्रेस नेता सीके जाफर शरीफ ने उन्हें चि_ी तक लिख डाली है. कहते भी हैं, “समझ में नहीं आ रहा है, ऐसी भी मजबूरी क्या है?”
कांग्रेस के अलगाववादी नेताओं को स्मरण दिलाना उचित है कि १९६३ में नेहरू द्वारा संघ के कार्यकर्ताओं को रिपब्लिक डे परेड में बुलाये जाने की याद दिलायी जा रही है. संघ की ओर से ये भी बताया जा रहा है कि सीनियर नेता एकनाथ रानाडे के बुलावे पर 1977 में इंदिरा गांधी ने विवेकानंद रॉग मेमोरियल का अनावरण किया था.संघ द्वारा बाढ़ तथा अन्य आपात के समय किये गये सहायता कार्यों की भी प्रशंसा की थी।
कांग्रेस को आज नहीं तो कल अलगाववाद छोड़कर राष्ट्रवाद को अपनाना ही होगा।