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Editorial :- अपनों पर अटहास करते हिन्दुत्ववादी और दिग्भ्रमित सहयोगिता

2014 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा के उपचुनावों के सफर पर नजर डालें तो भाजपा को उपचुनाव में तो हार मिलती है, लेकिन मुख्य चुनाव में वह जीत जाती है। तभी तो इस वक्त कुछ गिने-चुने राज्यों को छोड़कर करीब-करीब पूरे भारत पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों का राज है।
किसी सीट विशेष पर विपक्षी एकता भाजपा के विरूद्ध संभव हुई है। पर यही एकता क्या ५४५ सीटों के लिये भी संभव है?
भाजपा और कांग्रेस के बीच १५० सीटों से भी कम में सीधी टक्कर है। परंतु क्या शेष लगभग ४०० सीटों पर क्या कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां एक साथ चुनाव लडेंगी?
इसलिये उप चुनाव के नतीजों को अपने पक्ष में देखकर विपक्षी पार्टियों को जीत की खुशी में मदहोश नहीं होना चाहिये। इसी प्रकार से सत्तारूढ़ एनडीए को भी सोचना होगा कि विपक्षी पार्टियों की उपचुनाव की इस जीत को गंभीरता से लें या ना लें। एक चिंगारी भी अच्छे खासे महल को ध्वस्त कर सकती है।
उपचुनाव में विपक्ष की जीत पर कुमार विश्वास का तंज, ट्वीट करके पूछा ये सवाल
उपचुनाव में विपक्ष के द्वारा लोकसभा एवं विधानसभा की कई सीटों पर जीत हासिल करने को लेकर कुमार विश्वास ने ट्वीट करते हुए विपक्षी पार्टियों पर तंज कसा है. बता दें, कुमार विश्वास ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘Óआज श्वङ्करू को “चरित्र-प्रमाण पत्र” दे देंगे नवपतित ?ÓÓ
कुमार विश्वास के इस ट्वीट पर कई लोगों ने कमेंट करते हुए उनका समर्थन भी किया है. लोगों ने अपने कमेंट में लिखा, बिलकुल सर आज तो श्वङ्करू बिलकुल भगवान के यहां से आई है .. श्वङ्करू से अच्छा कुछ नहीं हो सकताÓÓ
: केजरीवाल ने बीजेपी को मिली हार को बताया जनता का ‘गुस्साÓ, लोगों ने पूछा पंजाब में ‘ÓआपÓÓ का क्या हुआ..
ट्विटर यूजर्स ने उन्हें ही बीते चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिले वोटों की याद दिला दी. लोगों ने कहा कि आपकी पार्टी के लोगों की भी तो जमानत जब्त हुई थी।
उपचुनाव के नतीजे करीब-करीब आ चुके हैं। ये नतीजे जहां संयुक्त विपक्ष के लिए राहत और ताकत का संदेश लेकर आएं हैं तो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी भी बजा रहे हैं। लोकसभा की चार सीटों पर उपचुनाव में बीजेपी ने दो सीटें गंवा दी हैं। हालांकि इन झटकों के बीच पश्चिम बंगाल में बीजेपी की हार में भी पार्टी के लिए सकारात्मक संकेत छिपे हुए हैं।
सच पूछा जाये तो अब उपचुनावों के नतीजों के उपरांत २०१९ के लिये बिछेगी शतरंज के मोहरे, होगा शह-मात का खेल।
सियासी दल अपने पैंतरे चलना शुरू कर सकते हैं।
अक्टूबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। इससे पहले ही अब कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम देखने को मिल सकतें हैं। मॉनसून सत्र में बीजेपी तीन तलाक और ओबीसी कमिशन बिल को पास कराने की पूरी कोशिश करेगी, जिनसे 2019 में पार्टी को काफी उम्मीदें है। हालांकि फिर भी उसके सामने किसानों और दलितों के मुद्दे पर विपक्ष की घेरेबंदी से निपटने की चुनौती होगी।
दलितों और किसानों के मुद्दों पर सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टियां चलेंगी शतरंज की चालें
2014 में बीजेपी की बड़ी जीत में इन किसान और दलितों के समर्थन का बड़ा योगदान था। दलितों पर हाल के दिनों में हुई कई घटनाएं और किसानों की घटती कमाई को विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बनाया। अब दलितों-किसानों के वोट पर होगी जंग।
बीजेपी दलित अधिकार के लिए आर्डिनेंस लाने की तैयारी के साथ किसानों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर भी बड़ी घोषणा करने की तैयारी में है। जाहिर है,अगले कुछ दिनों में राजनीति इन दो मुद्दों के इर्द-गिर्द रहेगी और 2019 में सही दो फैक्टर दिशा तय करेंगे।
संभव है अंतिम चरण में पीएम मोदी कल्याणकारी योजनाओं पर भारी रकम खर्च कर सकते हैं। आयुष्मान योजना भी 15 अगस्त को लॉन्च हो जाएगी। इसके अलावा 10 करोड़ लोगों को पेंशन स्कीम से जोडऩे का कार्यक्रम है। मतलब अगले 100 दिनों तक कुछ बड़ी घोषणाएं हो सकती है।
विपक्ष अब पेट्रोल सहित नौकरी के मुद्दे पर बड़ा आंदोलन कर सकता है। इसलिये संभव है   पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर लगाम लगाने का सरकार कुछ उपाय करे।
अभी 2019 से पहले 4 लोकसभा सीटों के उपचुनाव और होने हैं। इनमें कर्नाटक की तीन और जम्मू-कश्मीर की एक सीट है। इनमें दो अभी बीजेपी के पास हैं। अब इन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में देखना होगा जेडीएस और कांग्रेस की एकता रहेगी या नहीं और इन चुनाव में भाजपा क्या परिणाम लायेगी।
शिवसेना लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी के साथ नहीं जा सकती। उसे और भाजपा को हर हालत में साथ मिलकर लडऩा होगा। ऐसे में उपचुनाव में भाजपा की हार पर शिवसेना का अटहास करना अनुचित है। अपनों पर भी क्या कोई ठोकर लग जाने से अटहास करता है?
हिन्दुत्ववादी, राष्ट्रवादी शक्तियों को भी देवबंद से जारी फतवा और आर्कबिशप द्वारा इसाईयों को लामबंद करने की हरकत को हल्के में नहीं लेना चाहिये। अलगाववादी शक्तियों को हराने के लिये अधिकाधिक संख्या में राष्ट्रवादी ताकतों को वोटिंग करनी होगी।
यही संदेश इन उपचुनावों का है।