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Editorial: ममता शासित बंगाल क्यों समय-समय पर जल उठता है

16-9-2022

पश्चिम बंगाल का दूसरा नाम ही हिंसा बनता जा रहा है। वर्तमान समय में जब कभी भी बंगाल खबरों में छाता है, तो वो केवल अपनी हिंसा के कारण। इसमें कोई संदेह नजर नहीं आता कि ममता बनर्जी ने अपने 11 वर्षों के कार्यकाल में बंगाल को पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया है। जिसकी सरकार सत्ता में है, जिसके हाथों में बंगाल का शासन है, उस टीएमसी के गुंडे ही बंगाल में हिंसा मचाए हुए हैं।

अब एक बार फि र से बंगाल में हिंसा भड़की है। दरअसल, भ्रष्टाचार में लिप्त ममता सरकार के विरुद्ध मंगलवार को भाजपा ने मोर्चा खोला और सड़कों पर उतरकर नबन्ना चलो मार्च निकाला। इस दौरान ही भाजपा कार्यकर्ताओं और  पुलिस के बीच जगह-जगह पर हिंसक झड़प हो गयी। वहीं कुछ जगहों पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता भी भिड़ गए। बंगाल पुलिस ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इसके लिए वॉटर कैनन से लेकर आंसू गैस के गोले और लाठियों का प्रयोग किया गया। इस हिंसा में 250 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता और करीब 50 पुलिसकर्मी घायल हुए। वहीं इस दौरान विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को गिरफ्तार भी किया गया।

बंगाल में हुई हिंसा पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने सरकार से मार्च के दौरान किए गए कथित पुलिस अत्याचारों पर रिपोर्ट मांगी है। दरअसल, हिंसा को लेकर एक याचिका दायर कर भाजपा द्वारा मार्च में पुलिस पर अत्याचार का आरोप लगाया गया। याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन किया है कि राज्य प्रशासन विपक्ष के नेता के रूप में अधिकारी के आंदोलन में बाधा नहीं डाल सकता है।

देखा जाए तो बंगाल से हिंसा की खबरें आना अब कोई बड़ी बात नहीं रह गयी है। जो ममता बनर्जी हिंसा के माध्यम से ही बंगाल की सत्ता तक पहुंची हैं, उनसे बंगाल में शांति व्यवस्था बनाए रखने की आखिर क्या ही उम्मीद की जाए। सिंगूर आंदोलन और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ममता बनर्जी ने कुर्सी तक पहुंचने का सफर तय किया था। इन दो आंदोलनों के जरिए उन्होंने तीन दशक पुरानी वामपंथी सत्ता को हिलाया था।

14 वर्ष पूर्व साल 2007 में जमीन अधिग्रहण को लेकर नंदीग्राम में खूनी संघर्ष हुआ। वो ममता बनर्जी ही थीं, जिन्होंने नंदीग्राम आंदोलन का नेतृत्व किया। करीब दस महीनों तक चली राजनीतिक हिंसा में कई महिलाओं से सामूहिक बलात्कार हुआ था और कई लोगों की हत्या हुई। इस दौरान 14 लोगों की मृत्यु पुलिस की गोली लगने के कारण भी हुई थी। वहीं बात सिंगूर आंदोलन की करें तो यह वर्ष 2006 में शुरू हुआ था। दरअसल, तब टाटा ग्रुप वहां नैनो बनाने की फैक्ट्री लगाना चाह रहा था, जिसके लिए बंगाल की लेफ्ट सरकार के द्वारा किसानों की 997 एकड़ जमीन अधिगृहित की गयी और इसे कंपनी को सौंप दिया। इसके विरोध में ही ममता बनर्जी ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 26 दिनों की भूख हड़ताल बुलायी। सिंगूर आंदोलन के दौरान राज्य में जमकर हंगामा हुआ। अंत में वर्ष 2008 में टाटा कंपनी सिंगूर से निकलकर गुजरात के साणंद चली गयी थी।

इन दोनों आंदोलनों के जरिए ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सत्ता पर तो अवश्य काबिज हो गयी, परंतु इसके बाद नहीं बदल पाया तो वो है बंगाल का इतिहास। बंगाल में हमेशा से ही हिंसा की जड़े अत्यंत गहरी रही हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2021 की एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक राजनीतिक हत्याएं हुई थीं।

वर्ष 2011 में ममता बनर्जी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी। इस वर्ष 38 लोगों की राजनीतिक कारणों से हत्या हुई, जो देश में सबसे अधिक रही थे। इसके बाद 2012 में यह आंकड़ा 22 पर आया। वर्ष 2013 में भी बंगाल में सबसे अधिक राजनीतिक हत्याएं हुई थीं। इस दौरान 26 लोगों को मारा गया। वर्ष 2018 और 2019 में यह आंकड़ा 12 पर पहुंच आया था। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि बंगाल में 1999 से 2016 के बीच राजनीतिक हत्याओं का औसत 20 रहा है। वहीं, साल 2018 के पंचायत चुनाव से अक्टूबर 2020 तक करीब 100 नेताओं की हत्या हो चुकी है।

बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा न हो, ऐसा अब नाममुकिन सा ही हो गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार लोकसभा चुनाव 2014 के विभिन्न चरणों में हुए चुनाव के दौरान 15 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं। इस दौरान पूरे प्रदेश में राजनीतिक हिंसा की 1100 घटनाएं दर्ज की गयीं। वहीं, साल 2013 में हुए पंचायत चुनावों के दौरान 21 लोग मारे गए थे। इसके अलावा 2018 में पंचायत चुनाव के दौरान एक दिन में 18 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद 2019 में फिर लोकसभा चुनाव हुए और इस दौरान भी बंगाल में हिंसा का दौर नहीं थमा। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान 12 से अधिक लोगों ने जान गंवाई।

अब पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के दौरान हुई हिंसा की घटनाएं तो आपको याद होंगी। “खेला होबे” के नारे पर चुनाव लडऩे वाली टीएमसी के गुड़ों ने बंगाल में जमकर हिंसा मचाई थीं। यहां तक कि जिस किसी ने भी भाजपा को वोट दिया था, उनको तक निशाना बनाकर टीएमसी के गुंड़ों ने हर बर्बरता को पार कर दिया था। बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा में 60 लोगों की जान गयी थी, जिसमें 50 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता शामिल रहे।

पश्चिम बंगाल की स्थिति को देखकर तो साफ तौर पर पता चलता है कि ममता दीदी के राज में आम जनता तो वहां कतई सुरक्षित नहीं है। सुरक्षित हैं तो केवल गुंडे और हिंसा फैलाने वाले उपद्रवी।