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सबरीमला मुद्दे से मिले फ़ायदे को वोट बैंक में बदल सकेगी भाजपा?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मंदिर के मुद्दे ने पार्टी को उत्तर भारत में प्रचंड समर्थन हासिल करने में काफी मदद की और कुछ साल बाद ही पार्टी गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब हुई.

लेकिन ऐसा लगता है कि काफी हद तक उत्तर भारत की पार्टी रही भाजपा को केरल के सबरीमला मंदिर में अयोध्या जैसा ही एक नया मुद्दा मिल गया है.

दो साल पहले, केरल जैसे राज्य में भाजपा को ऐसी राजनीतिक पार्टी माना जाता था जिसके साथ खुले तौर पर जुड़ने में कई लोग शर्मिंदा महसूस करते होंगे. यहां लोगों ने पिछले चार दशकों के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और कांग्रेस को सत्ता में देखा है.

लेकिन बीते दो महीनों के दौरान हालात ने नाटकीय रूप से करवट बदली है और अब शायद ही कुछ ही लोग होंगे जो कहेंगे कि केरल में भाजपा का अस्तित्व नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले ने 10 से 50 साल की महिलाओं (माहवारी होने की उम्र की महिलाओं) के सबरीमला के अयप्पा स्वामी मंदिर में प्रवेश करने से लगी रोक हटा ली थी. इसी के साथ भाजपा को परंपरा के समर्थन में ‘हिंदुओं को एकजुट करने का मौका’ मिल गया.

साल में एक बार आने वाले महत्वपूर्ण 64-दिवसीय मंडला-मक्करविलक्कू तीर्थाटन के लिए 17 नवंबर को सबरीमाला मंदिर के कपाट खुले. इसके बाद से ही भाजपा और सीपीएम और लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के नेतृत्व वाली सरकार के बीच तनाव लगातार बना हुआ है.

मंडला-मक्करविलक्कू, तीन शब्दों को जोड़ कर बना एक शब्द है जिसका अर्थ है पवित्र समय (मंडला), जो मलयालम कैलेंडर के एक ख़ास महीने में आता है (मकर) और जब दिए जलाए जाते हैं (विलक्कू). इस तीर्थ यात्रा के आख़िरी दिन दिए जलाए जाते हैं.

सीपीएम के ढुलमुल रवैये से मिला भाजपा का फ़ायदा

बीते दिनों भाजपा परिवार के सदस्य कुछ ऐसी घटनाओं में शामिल रहे जिस कारण उन्हें हिरासत में लिया गया और राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी.

हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े एक नेता की गिरफ़्तारी के बाद यहां विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और मंदिर खुलने के पहले दिन राज्य में हड़ताल की अपील की गई. इसके बाद एक भाजपा नेता को हिरासत में लिए जाने के बाद विरोध में लोगों ने सड़कों पर चक्काजाम कर दिया.

आश्चर्यजनक बात ये थी कि राज्य के छोटे शहरों में भी 200 से 300 लोग विरोध प्रदर्शन के लिए एकजुट हो रहे थे जबकि उनके सहयोगियों को नियमों के उल्लंघन के आरोप में जेल में बंद कर दिया गया था.

ये नियम इसी साल अक्तूबर में बने थे ताकि मंदिर में आ रही 50 साल की कम उम्र की महिलाओं के साथ हो रही हिंसा को रोका जा सके. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अक्तूबर में पहली बाद मंदिर के कपाट खोले गए थे.

राजनीतिक विश्लेषक जो स्कारिया ने बीबीसी हिंदी को बताया, “बड़ी संख्या में लोग मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का खुल कर विरोध कर रहे हैं और इस पर ऐसा लग रहा है कि सीपीएम ढुलमुल नज़रिया अपना रही है.”

इसी साल अक्तूबर में राज्यभर में बीजेपी के समर्थन से हो रहे विरोध प्रदर्शनों में समाज के सभी तबकों से महिलाओं से हिस्सा लिया था.

इतिहासकार और फेमिनिस्ट जे देविका कहती हैं कि उन्हें महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के ख़िलाफ “रुढ़िवादी महिलाओं” का सामने आना आश्चर्य की बात नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 से 50 साल की सभी महिलाओं को पेरियार के जंगलों को बीच मौजूद स्वामी अयप्पा के इस मंदिर में जाने की अनुमति दे दी है. लेकिन ये महिलाएं मंदिर में प्रवेश करने के लिए 50 साल की उम्र तक इंतज़ार करने के लिए तैयार हैं.

तिरुवनंतपुरम में सेंटर फॉर डेवेलपमेन्ट स्टडीज़ में सहायक प्रोफ़ैसर देविका कहती हैं, “राजनीतिक रूप से भाजपा तो बढ़ी ही है, लेकिन इससे भी महत्वपू्र्ण है कि इसका विकास सामाजिक रूप में भी हुआ है. यहां व्यापक स्तर पर रुढ़िवाद पसरा था जिसका वामपंथी और दक्षिणपंथी साझा तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे. अब तक, वामपंथियों ने यहां राजनीतिक रूप से प्रगतिशील और सामाजिक रूप से प्रतिगामी (पीछे हटने वाले) होने का फ़ायदा उठाया है.”

ये बात सभी जानते हैं कि 1957 में भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ईश्वर में विश्वास नहीं करने वालों में से थे लेकिन अपनी पत्नी के साथ वो हमेशा ही मंदिर जाया करते थे.