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ये छह सीटें तय करेंगी छत्तीसगढ़ की सियासत

केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्ण आरक्षण का ऐलान कर ऐसा मुद्दा उछाला है जो चुनावी साल में विपक्ष के गले की हड्डी बन गया है। विपक्ष इस मुद्दे पर साथ देने को लालायित दिख रहा है। इसकी वजह यह है कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और नफा नुकसान का गणित बाकी चीजों से ऊपर है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं।

इनमें से चार सीटें बस्तर, कांकेर, रायगढ़ और अंबिकापुर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं जबकि एक सीट जांजगीर चांपा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बाकी बची छह सीटें सामान्य वर्ग की हैं तो जरूर लेकिन इन सीटों में शामिल कई विधानसभा सीटें आरक्षित वर्गों की हैं।

रायपुर लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा ऐसी विधानसभा सीटें हैं जो सामान्य वर्ग की हैं। यहां भी आरंग एससी वर्ग की आरक्षित सीट है। दुर्ग लोकसभा में शामिल 9 विधानसभा सीटों में से सात सामान्य वर्ग की हैं और दो एससी वर्ग की। चार एसटी लोकसभा सीटों में से बस्तर लोकसभा सीट ऐसी है जहां एक विधानसभा को छोड़कर शेष सभी विधानसभा सीटें एसटी वर्ग की हैं।

कांकेर, अंबिकापुर, रायगढ़ में भी अधिकांश विधानसभा सीटें आरक्षित वर्ग की हैं। बिलासपुर में एससी वर्ग का जोर है तो कोरबा लोकसभा में एससी और एसटी दोनों वर्ग की आरक्षित विधानसभा सीटें शामिल हैं। महासमुंद में तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां एसटी वर्ग का प्रभुत्व है। इन हालातों में सवर्ण आरक्षण का कितना फायदा मोदी सरकार को मिल पाएगा यह देखना रोचक होगा।

राज्य में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 40 फीसद है। इनकी वास्तविक जनसंख्या का पता नहीं है क्योंकि 1933 के बाद कभी इनकी गिनती ही नहीं की गई। देश में ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसद आरक्षण का प्रावधान है पर छत्तीसगढ़ में 14 फीसद दिया जा रहा है। इसे लेकर लगातार आंदोलन भी किए जाते रहे हैं।

यह है राज्य के जातिगत आंकड़े 

आदिवासी समाज के सचिव बीएस रावटे ने कहा कि हमारे राज्य मंे 32 फीसद आदिवासी, 40 फीसद ओबीसी और करीब 12 फीसद अनुसूचित जाति के लोग हैं। आदिवासियों को 32, एससी को 12 फीसद आरक्षण दिया जा रहा है पर ओबीसी को सिर्फ 14 फीसद ही मिल रहा है। राज्य में अन्य वर्गों के छह से सात फीसद लोग ही हैं। इनका असर रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, महासमुंद, बिलासपुर लोकसभा सीटों पर है।

कोर्ट में अटका है मामला

ओबीसी आरक्षण 14 फीसद देने से यहां कुल आरक्षण 58 प्रतिशत हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा नहीं हो सकता हालांकि तमिलनाडु में 69 फीसद है। कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में भी 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दिया गया है। छत्तीसगढ़ में ओबीसी 27 फीसद मांग रहे हैं जबकि 14 फीसद देने से ही 50 प्रतिशत की सीमा पार हो गई है। यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है।