![](https://paw1xd.blr1.cdn.digitaloceanspaces.com/lokshakti.in/2024/06/default-featured-image.webp)
उच्चतम न्यायालय ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले की समीक्षा करने का शुक्रवार को फैसला किया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को आरक्षण देने का मार्ग प्रशस्त करने वाले संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.
पीठ ने कहा, हम मामले की जांच कर रहे हैं और इसलिए नोटिस जारी कर रहे हैं जिनका चार सप्ताह में जवाब दिया जाये. पीठ ने आरक्षण संबंधी केंद्र के इस फैसले के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगायी. इस चुनावी वर्ष में नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ देने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया था.
जनहित अभियान और यूथ फॉर इक्वेलिटी जैसे संगठनों ने केंद्र के निर्णय को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ ने इसे खारिज करने का अनुरोध करते हुए कहा है कि आर्थिक मापदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता. याचिका में कहा गया है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण को सामान्य वर्ग तक सीमित नहीं रखा जा सकता और 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता इसलिए यह प्रावधान संविधान का उल्लंघन करता है. कारोबारी तहसीन पूनावाला ने भी याचिका दायर कर इसे खारिज करने का अनुरोध किया है.
लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमश: आठ और नौ जनवरी को इस विधेयक को पारित कर दिया था और राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिये हैं. राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से दुर्बल लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दस प्रतिशत आरक्षण संबंधी इस प्रावधान को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी थी.
More Stories
epaper lokshakti-19-july-24
NCET Exam 2024: राष्ट्रीय सामान्य प्रवेश परीक्षा 10 जुलाई को होगी आयोजित
आईएनडीआईए ने लिया कार्यस्थगन प्रस्ताव लाने का फैसला