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छत्तीसगढ़ सरकार ने सप्ताहभर में दूसरी बार लिया एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज

छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बार फिर प्रतिभूति (सिक्योरिटी बांड) बेचकर हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। यह राशि सरकार 7.93 फीसद ब्याज दर से पांच वर्ष में चुकाएगी। सप्ताहभर के भीतर यह दूसरा मौका है,जब राज्य सरकार ने हजार करोड़ का कर्ज लिया है, जबकि जनवरी से अब तक यह आंकड़ा 45 सौ करोड़ पहुंच चुका है।

इससे पहले जनवरी में सरकार ने दो बार में 35 सौ करोड़ का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) के माध्यम से बांड बेचकर कर्ज लिया है। राज्य सरकार बीते चार महीने से लगातार बांड बेचकर रकम जुटा रही है। सरकार के लगातार कर्ज लेने की वजह से राज्य में प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ 16 हजार से बढ़कर 18 हजार रुपये से अधिक हो गया है।

पांच महीने में सात हजार करोड़ का कर्ज

छत्तीसगढ़ सरकार पांच महीने में आठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है। इनमें जनवरी में दो बार में 1500 व 2000 हजार करोड़ का कर्ज भी शामिल है। इन दोनों कर्ज को सरकार साढ़े सात से करीब आठ फीसद ब्याज दर के साथ चुकाएगी।

चालू वित्तीय वर्ष में कर्ज की तय सीमा पर पहुंची सरकार

चालू वित्तीय वर्ष में सरकार करीब कर्ज की तय सीमा के करीब पहुंच चुकी है। पिछले दिनों विधानसभा में बजट प्रस्तुत करने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मीडिया से चर्चा में बताया था कि राज्य ने इस साल अब तक 12462 कराड़ का कर्ज लिया है जो आरबीआई से स्वीकृत सीमा के भीतर ही है। उन्होंने यह भी बताया कि 2019-20 में हम 10 हजार 931 करोड़ रुपये तक कर्ज ले सकेंगे।

लगातार ले रहे कर्ज

सरकार 2014-15 से जनवरी 2018 तक रिजर्व बैंक से 18350 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। 2014 में चार किस्तों में 2200, 2015 में 6 किस्तों में 5000 करा़ेड, 2016 में 3 किस्तों में 1850 करोड़ व 2017 में पांच किस्तों में 7200 करोड़ लिए गए। वहीं 2018 में करीब 2200 करोड़ से अधिक का कर्ज लिया गया है।

प्रभावित होगा विकास कार्य

सरकार के बांड बेचने और बार- बार कर्ज लेने से विकास कार्यों पर असर पड़ सकता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरकार बांड बेचकर जो लोन ले रही है उसे ब्याज सहित चुकाना पड़ेगा। इसके लिए सरकार को स्वयं पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इससे विकास कार्य विशेष रुप से अधोसंरचना विकास के काम प्रभावित हो सकते हैं।

नए बजट पर पड़ेगा असर

सरकार के बार- बार कर्ज लेने का असर अप्रैल 2019 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष और बजट पर पड़ सकता है। जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य सरकारों के पास अब टैक्स बढ़ाकर राजस्व हासिल करने की संभावना लगभग खत्म हो गई है। ऐसे में सरकार आबकारी या कुछ अन्य सेवाओं पर सेस लगा कर फंड की व्यवस्था करने की कोशिश कर सकती है।

इस वजह से लेना पड़ रहा कर्ज 

सत्ता में आते ही कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और धान 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर खरीद के चुनावी वादे को पूरा करने का एलान किया। सरकार करीब 6100 करोड़ का कर्ज माफ कर रही है। वहीं, धान का समर्थन मूल्य 2500 करने के लिए सरकार को करीब 54 सौ करोड़ से अधिक की जरुरत थी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार तीन सौ रुपये प्रोत्साहन राशि देने के लिए 27 सौ करोड़ की व्यवस्था कर गई थी। इस वजह से मौजूदा सरकार को भी करीब इतने की और की व्यवस्था करनी पड़ रही है। दोनों मिलाकर सरकार को लगभग 8875 करोड़ की जरुरत है।